बालू के अवैज्ञानिक दोहन के कारण वीरान हो रहीं नदियां, समय पर नहीं संभले तो…

Central Desk

Unscientific Exploitation of sand : बालू का महत्व सिर्फ निर्माण कार्य तक ही सीमित नहीं है, बल्कि पारिस्थितकीय दृष्टिकोण से भी इसका काफी महत्व है।

पर्यावरण संतुलन के लिए नदियों में भरपूर बालू को होना अनिवार्य है। पानी के बाद बालू (Sand ) ही ऐसी उपयोगी चीज है, जिसका सर्वाधिक और अवैज्ञानिक ढंग से दोहन हो रहा है। यही कार है कि नदियां वीरान होती जा रही हैं।

कई नदियों का अस्तित्व ही संकट में आ गया है। बालू को लघु खनिज के रूप में वर्गीकृत किया गया है, जिसके बिना निर्माण कार्य की कल्पना भी नहीं की जा सकती।

नदियों में भरपूर बालू होने से आसपास की वनस्पति और जीवों को पनपने का अवसर मिलता है। इससे जैव विविधता को पोषण मिलता है और पर्यावरण की सुरक्षा होती है। बढ़ते शहरीकरण और सरकारी भवनों, पुल-पुलियों के अलावा अन्य सभी तरह कें निर्माण कार्यों में आयी तेजी के कारण बालू की मांग लगातार बढ़ती जा रही है।

इसकी पूर्ति के लिए नदियों से अवैध, अनियंत्रित और अवैज्ञानिक तरीके से बालू उत्खनन को बढ़ावा मिल रहा है।

बालू के अवैध उत्खनन के कारण न सिर्फ नदियां (Rivers) वीरान हो रही है, बल्कि जल धारण की क्षमा भी प्रभावित हो रही है और नदियों के तट का स्वरूप भी बिगड़ता जा रहा है। नदियों की जल धारण की क्षमता घटने से इसका सीधा असर जलापूर्ति पर पड़ रहा है।

खूंटी (Khunti) जिले का ही उदाहरण लें, जहां गर्मी के दिनों में गभीर जल संकट का सामना आम लोगों को करना पड़ रहा है।

बालू के अवैध और अंधाधुंध उत्खनन से इस जिले की कारो, छाता, तजना, बनई, छोपी सहित कई छोटी-बड़ी नदियां पूरी तरह सूख चुकी हैं। बालू तस्करों ने तो बनई नदी के अस्तित्व को ही खत्म कर दिया है।

यह मात्र एक छोटा सा सूखा नाला बनकर रह गया है। गांव कें बड़े बुजुर्ग बताते हैं कि कारो, छाता, तजना जैसे नदियां भीषण गर्मी में भी नहीं सूखती थीं, पर रांची में रियल स्टेट का व्यवसाय बढ़ने और निर्माण कार्य में आई तेजी कें कारण बालू की मांग लगातार बढ़ती जा रही है।

इसके कारण इसकी जमकर तस्करी हो रही है। सिर्फ खूंटी जिले से ही हर दिन सैकड़ों हाइवा ट्रक से बालू की तस्करी की जाती है। इसके कारण नदियां पूरी तरह सूख चुकी हैं और मानव के साथ ही पशु-पक्षियों को भी बूंद-बूंद पानी के लिए तरसना पड़ रहा है।

बालू का बुद्धिमत्तापूर्ण उपयोग जरूरी: डॉ नीतीश प्रियदर्शी

नदियों से बालू के अवैध और अवैज्ञानिक तरीकें से उत्खनन कें दुष्प्रभाव के संबंध में प्रख्यात पर्यावरणविद डॉ नीतीश प्रियदर्शी कहते हैं कि बालू को सिर्फ निर्माण सामग्री कें रूप में नहीं देखना चाहिए, बल्कि इसका बुद्धिमत्तापूर्ण उपयोग करते हुए आनेवाली पीढ़ियों के लिए हमें नदियों के अस्तित्व को बचाकर रखना जरूरी है।

डॉ प्रियदर्शी ने कहा कि नदियों के अस्तत्व को बचाकर रखने के लिए सबसे पहले हमें बालू का अवैज्ञानिक ढंग से हो रहे उत्खनन (Excavation) पर रोक लगानी होगी। उन्होंने कहा कि बालू का ठोस विकल्प भी खोजना समाज और भावी पीढ़ी के लिए हितकारी होगा।