Married Women Tied Raksha Sutra: वट सावित्री के पावन मौके पर सुहागिन महिलाओं ने गुरुवार को वट वृक्ष की पूजा-अर्चना कर और पेड़ में रक्षा सूत्र बांधकर अखंड सौभाग्य का वरदान मांगा।
जिला मुख्यालय (District Headquarters) के अलावा तोरपा, कर्रा, रनिया, मुरहू और अड़की प्रखंड के कस्बाई और ग्रामीण इलाकों में वट सावित्री का त्योहार पूरे श्रद्धा और विश्वास के साथ मनाया गया।
वट सावित्री को लेकर सुबह से ही मंदिरों और वट वृक्षों के पास सुहागिनों की भीेड़ उमड़ने लगी थी।
शहरी क्षेत्र में तो महिलाओं को पूजा करने के लिए लंबा इंतजार करना पड़ा। सुहागिनों ने पूजा-अर्चना के बाद पडितों से सावित्री और सत्यवान की कथा सुनी और पति की लंबी उम्र की कामना की।
क्यों मनाते हैं वट सािवत्री का पर्व
वट सावित्री पर्व मनाने के संबंध में पुरोहित सच्चिदानंद शर्मा बताते हैं कि सतयुग में अश्वपति नामक एक राजा थे। उनकी सावित्री नामक एक अत्यंत सुंदर कन्या थी। जन्म के समय ही नारद मुनि ने राजा अश्वपति को बता दिया था विवाह के एक साल बाद ही सावित्री के पति की मृत्यु (Death) हो जायेगी।
यह सुनकर राजा विचलित हो गये। नारद ने सावित्री के पति की मौत की भविष्यवाणी करते हुए बताया था कि उसकी मौत ज्येष्ठ महीने की अमावश्या तिथि को होगी। अश्वपति ने सावित्री को अपना पति खुद चुनने को कहा। उसी समय अपने राज्य से निष्कासित राजा द्युमेत्सेन जंगल में रहते थे। दोनों नेत्रहीन थे। उनका एक पुत्र था जिसाका नाम सत्यवान था।
सत्यवान को देखते ही सावित्री उस पर मोहित हो गई और अपने पिता से सत्यवान से विवाह कराने का अनुरोध किया। विवाह कें साल बाद जब ज्येष्ठ महीने की अमावश्याा तिथि पहुंचने लगी, तो सावित्री ने अन्न-जल का त्याग कर भगवान की भक्ति में लीन रहने लगी।
नीयत समय पर वट वृक्ष से लकड़ी काटने के दौरान सत्यवान मुर्छित हो गये। यह देख सावित्री ने अपने पति के सरि को गोद में रख लिया और उसी अवस्था में सत्यवान की मृत्यु हो गई।
यमराज उनके प्राण लेंने के लिए पहुचे, पर सती सावित्री के पास जाने की उनकी हिम्म्त नहीं हुई। उन्होंने सावित्री से पति का मोह छोड़ देने का अनुरोध किया, पर सावित्री टस से मस नहीं हुई।
अंततः यमराज ने कहा कि सत्यवान के प्राण के बदले तुम तीन वरदान मांग सकती हो। सावित्री ने पहला वरदान (First Blessing) मांगा कि उसके नेत्रहीन सास-ससुर की आंखों की ज्योति वापस आ जाए।
दूसरा वरदान उन्होंने ससुर का राज्य वापस पाने का वरदान मांगा। अंतिम वरदान में सावित्री ने पुत्रवती होने का वरदान माग लिया। इस पर यमराज के मुंह से तथास्तु निकल गया।
इस पर सावित्री ने कहा कि आप यदि मेरे पति को ले जाएंगे, तो पुत्रवती कैसे बनूंगी। हार कर यमराज ने सत्यवान कें प्राण वापस कर दिये और वरदान दिया कि ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि को वट सावित्री का व्रत करनें वाली महिलाओं का अखंड सौभाग्य की प्रापित होगी। इसलिए सभी सुहागिनों को इस व्रत को जरूर करना चाहिए।