झारखंड की सियासत में JBKSS का उभार महत्वपूर्ण, इस बार कई सीटों पर…

Central Desk

JBKSS is Important in the Politics of Jharkhand.: झारखंड की सियासत में रह-रहकर नई घटनाओं और ताकतों का उभार सामने आते रहता है।

दशकों से क्षेत्रीय राजनीति की प्रयोगशाला रहे झारखंड में इस लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Elections) में एक अहम राजनीतिक परिघटना हुई है। यह है, JBKSS यानी झारखंडी भाषा खतियानी संघर्ष समिति नामक संगठन का सियासी उभार।

झारखंड के Domicile, भाषा, नौकरी और परीक्षा जैसे सवालों पर चार सालों से आंदोलन करने वाले युवाओं के इस संगठन ने राज्य की आठ लोकसभा सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे। कम से कम तीन सीटों पर इसके उम्मीदवार मुकाबले का महत्वपूर्ण कोण बनकर उभरे हैं।

चुनाव परिणामों को लेकर तमाम

एजेंसियों-चैनलों के Exit Poll के जो पूर्वानुमान आए हैं, उनमें से दो एजेंसियों ने एक सीट पर इस संगठन के चुनाव जीतने की संभावना जाहिर की है। यह सीट है गिरिडीह, जहां संगठन के अध्यक्ष जयराम महतो बतौर निर्दलीय उम्मीदवार मैदान में हैं।

जयराम महतो झारखंड में अब किसी के लिए भी अनजाना नाम नहीं है। आक्रामक भाषण शैली वाला यह युवक करीब चार साल पहले ही फायरब्रांड क्राउड पुलर लीडर के तौर पर उभर चुका था, लेकिन चुनावी राजनीति में उसकी और उसके संगठन की यह पहली एंट्री है। जयराम महतो को उनके समर्थक “युवा टाइगर” के नाम से बुलाते हैं।

चुनाव प्रचार अभियान और पोलिंग डे की रिपोर्ट के मुताबिक, गिरिडीह में जयराम महतो के अलावा हजारीबाग में इस संगठन के उम्मीदवार संजय मेहता और रांची में देवेंद्रनाथ महतो ने अपनी मजबूत मौजूदगी का एहसास कराया है।

संभावना जताई गई है कि इन्हें कई क्षेत्रों में न केवल अच्छा जनसमर्थन मिला, बल्कि यह वोटों में भी तब्दील हुआ है। यही वजह है कि इन सीटों पर जीत-हार की संभावनाओं का आकलन करने वाले लोग “जेबीकेएसएस” फैक्टर पर भी गौर कर रहे हैं।

इस संगठन ने कोडरमा में मनोज यादव, सिंहभूम में दामोदर सिंह हांसदा, चतरा में दीपक गुप्ता, धनबाद में अखलाक अहमद और दुमका में देवीलता टुडू को उम्मीदवार बनाया है, लेकिन इनकी उपस्थिति मैदान में इतनी प्रभावशाली नहीं रही कि चुनावी समीकरणों पर खास असर पड़ा हो।

झारखंड में राजनीति के जो जातीय समीकरण हैं, वह भी JBKSS के लिए मुफीद हैं। संगठन के अध्यक्ष जयराम महतो (Jairam Mahato) कुर्मी जाति से आते हैं और राज्य की राजनीति में इस जाति को आदिवासियों के बाद सबसे ज्यादा प्रभावी माना जाता है।

राज्य में NDA के घटक दल AJSU के जनाधार में भी कुर्मी जाति सबसे प्रमुख फैक्टर है।

अब यह माना जा रहा है कि JBKSS कुर्मी वोट बैंक का एक बड़ा हिस्सा अपने साथ करने में कामयाब रहा है। इसके अलावा भाषा, नियोजन नीति, डोमिसाइल और नौकरी के सवालों को लेकर लगातार आंदोलनों से इस संगठन ने विभिन्न तबके के छात्रों-युवाओं को बड़ी संख्या में अपने साथ जोड़ा है।

पिछले साल जून के महीने में धनबाद के बलियापुर हवाई पट्टी मैदान में 44 डिग्री तापमान के बीच JBKSS का बड़ा सम्मेलन हुआ था और इसमें राज्य के विभिन्न इलाकों से बड़ी संख्या में युवाओं-छात्रों की मौजूदगी में ऐलान किया गया था कि संगठन संसदीय राजनीति में हस्तक्षेप करेगा।

संगठन के उपाध्यक्ष और हजारीबाग सीट से प्रत्याशी रहे संजय मेहता IANS से कहते हैं, “हमने आठ सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे और हर क्षेत्र में हम मजबूती के साथ लड़े हैं।

हमें सकारात्मक परिणाम की उम्मीद है। हमारी कोशिश है कि आने वाले विधानसभा चुनाव के पहले हमारी पार्टी रजिस्टर्ड हो जाए। हमारा उद्देश्य झारखंड की राजनीति में सार्थक हस्तक्षेप करना है।”

गौरतलब है कि झारखंड में हमेशा से ही क्षेत्रीय दलों का प्रभाव रहा है। प्रमुख क्षेत्रीय दल झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) अभी सत्ता में है।

इससे पहले बाबूलाल मरांडी के नेतृत्व वाली झारखंड विकास मोर्चा, एनोस एक्का की झारखंड पार्टी, समरेश सिंह की झारखंड वनांचल कांग्रेस और कई क्षेत्रीय दलों ने अपनी ताकत का एहसास कराया है।

यहां के क्षेत्रीय-स्थानीय मुद्दों को लेकर कई पार्टियां और मोर्चे बनते रहे हैं। JBKSS के उदय को भी इसी सिलसिले की महत्वपूर्ण कड़ी के रूप में देखा जाने लगा है।

यह तय माना जा रहा है कि नवंबर-दिसंबर में संभावित विधानसभा चुनाव (Assembly Elections) में इस संगठन की मौजूदगी सियासी समीकरणों को बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका होगी।