Chhath Festival of Folk faith, Ends: राजधानी रांची के सभी छठ घाटों में लोक आस्था का महापर्व छठ (Great festival Chhath) उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देने के साथ संपन्न हुआ।
कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को व्रतियों ने सुबह 06 बजकर 32 मिनट पर उदीयमान सूर्यदेव को अर्घ्य दिया और धन, धान्य और आरोग्य की कामना की। अर्घ्य देने के बाद व्रतियों ने पारण कर निर्जला उपवास को पूरा किया।
पंडित Manoj Pandey ने शुक्रवार को कहा कि सूर्य षष्ठी का व्रत आरोग्य की प्राप्ति, सौभाग्य और संतान के लिए रखा जाता है। स्कंद पुराण के अनुसार राजा प्रियव्रत ने भी छठ व्रत रखा था।
उन्हें कुष्ट रोग हो गया था। इस रोग से मुक्ति के लिए भगवान भास्कर ने भी छठ व्रत किया था। स्कंद पुराण में प्रतिहार षष्ठी के तौर पर इस व्रत की चर्चा है। वर्षकृत्यम में भी छठ की महत्ता की चर्चा है।
5 तारिक से शुरू हुआ था महापर्व
उल्लेखनीय है कि आस्था का महापर्व साल में दो बार चैत्र और कार्तिक माह में मनाया जाता है। छठ महापर्व की शुरुआत कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को नहाय-खाय के साथ हुई थी। इस दिन व्रतियों ने अरवा चावल, चना का दाल और कद्दु का सब्जी खाया था।
कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि यानी 6 नवंबर को खरना था। इस दिन रात में व्रतियों ने खीर का प्रसाद ग्रहण किया था।
इसके बाद व्रतियों का 36 घंटे का निर्जला उपवास (Waterless Fasting) शुरू हुआ था। पंचमी तिथि को व्रतियों ने अस्तचलागामी सूर्य को अर्घ्य दिया था जबकि शुक्रवार को छठ के चौथे दिन अरुणोदय काल में भगवान भास्कर को अर्घ्य दिया गया। व्रतियों के पारण के साथ चार दिनों तक चलने वाला छठ महापर्व संपन्न हुआ।