“Brotherhood Shines in Hazaribagh Village on Muharram”: झारखंड में हजारीबाग के चौपारण प्रखंड का डुमरी गांव एकता और भाईचारा की ऐसी मिसाल पेश करता है जो नफरती स्वभाव के लोगों की आंखें खोल देगा।
हिंदू समाज के लोग उठाते हैं ताजिया
बताया जाता है कि आजादी के तीन वर्ष बाद से यहां के हिंदुओं की ओर से ताजिया उठाने की परम्परा चली आ रही है। खास बात यह है कि इस गांव की आबादी लगभग तीन हजार से अधिक है, जिसमें एक भी धर Muslim का नहीं है। बावजूद इसके हर्षोल्लास से प्रत्येक वर्ष Muharram का त्योहार मनाया जाता है।
1950 में प्रखंड स्थित चैय के मौलाना ने डुमरी निवासियों के सहयोग से ताजिया उठाना प्रारम्भ किया था। यह कई वर्षों तक चला। बाद में किसी कारणवश मुहर्रम मनाने की परंपरा को बंद कर दिया गया। कई वर्ष बीत जाने के बाद जिस स्थान पर चौका हुआ करता था,
उस स्थान आस-पास की जमीन को डुमरी सहित आस निवासी तिलक साय ने खरीद ली।
फिर से यहां डुमरी ग्रामीणों की सहायता से तिलक साय के नेतृत्व में पुनः मुहर्रम की शुरुआत हुई। कई वर्षों तक चले इस परंपरा को फिर किसी कारणवश बंद कर दिया।
बाधा के बाद चौथी पीढ़ी ने फिर शुरू की परंपरा
पहली पीढ़ी तिलक साव दूसरी पीढ़ी सुकर साव व खगन साव तीसरी पीढ़ी बालेश्वर साव, अर्जुन साब, अधीन साथ, ब्रहमदेव साथ,
विजय साव र, दिनेश साव, लखन साव अब चौथी पीढ़ी संजू साव, घनश्याम साथ, सुनील साथ, राजेश साव, भरत पवन, पंकज, आशीष कुमार के जिम्मे मुहर्रम की जिम्मेवारी है। सामूहिक आर्थिक सहयोग से ताजिया उठाया जाता है।