हजारीबाग: जिंदगी भला किसे प्यारी नहीं होती। लेकिन, गरीबी और बीमारी ऐसी कि दारू के बक्शीडीह निवासी 60 वर्षीय लालजी पासवान अपनी मौत के तड़प रहे हैं।
पूरी जिंदगी विवशता में जीने के बाद उम्र के इस अंतिम पड़ाव पर उनका धैर्य जवाब दे गया है और अब वह मौत की भीख मांग रहे हैं, लेकिन उनको मौत भी नहीं आ रही है।
आलम यह है कि उनके पैर का जख्म इस कदर भयावह हो गया है कि उसमें कीड़े लग गए हैं। आज उसे देखने व इलाज कराने वाला कोई नहीं है।
एकमात्र विधवा बहन अपना जेवर बेचकर अाैर ब्याज पर कर्ज लेकर उसका इलाज करवा रही है। लेकिन, अब तो उसे भी कोई कर्ज नहीं देता है। लालजी पासवान कहते हैं ऐसे में जिंदा रहने का भला क्या मतलब।
क्या है मामला
उसकी विधवा बहन ने बताया कि बचपन में ही वह पाेलियाे ग्रसित हो गया था। तब से वह अपना जीवन किसी तरह जी रहा। आज उसके पैर में जख्म हो गए हैं।
इलाज के अभाव में जख्म पर कीड़े रेंगते नजर आ रहे हैं। अपनी इस दुर्दशा से विवश होकर उन्होंने कई दिनाें से खाना-पीना भी त्याग दिया है ताकि वह मौत के मुंह में समा जाए।
लेकिन उसे मौत भी नहीं आ रही है। लालजी ने विवश हाेकर बताया कि न जाने कौन सा पाप किया था कि भगवान मौत भी नहीं दे रहा है।
दो वक्त की रोटी भी नसीब नहीं
हालांकि सांसद प्रतिनिधि राजन सिन्हा के प्रयास से उसका प्रधानमंत्री आवास, दिव्यांगता पेंशन व राशन कार्ड बना है लेकिन राशन कार्ड से मात्र एक यूनिट होने के कारण पांच किलो प्रति महीना ही अनाज मिल रहा है। जिससे दोनों भाई बहन को दो वक्त का भोजन भी नसीब नहीं हो पा रहा है।