समन्वय की राह पर कमल नाथ?

Central Desk

भोपाल : मध्यप्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष कमल नाथ प्रदेश को एकजुट करने की कवायद में जुट गए हैं और वे समन्वय की राह पर आगे बढ़ते नजर आ रहे हैं।

यह संदेश रविवार को उन्होंने दिया भी, जब वे सलकनपुर में पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण यादव के साथ धार्मिक अनुष्ठान करते नजर आए।

राज्य में लगभग डेढ़ दशक तक सत्ता से बाहर रहने के बाद कांग्रेस ने वर्ष 2018 में सत्ता में वापसी की थी, तब बड़ा श्रेय कमलनाथ के खाते में गया था क्योंकि उन्होंने तमाम नेताओं को एकजुट करने में सफलता पाई थी।

वहीं पार्टी को जमीनी स्तर पर मजबूत करने के लिए कमलनाथ से पहले प्रदेश अध्यक्ष की कमान संभाले रहे पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण यादव ने कोई कसर नहीं छोड़ी थी।

कांग्रेस में एकजुटता जरूरी है

लगभग डेढ़ साल बाद राज्य में विधानसभा का चुनाव होना है और इससे पहले कांग्रेस में एकजुटता जरूरी है, यह सभी महसूस कर रहे हैं। इसी को ध्यान में रखकर कमलनाथ पार्टी में समन्वय बनाने में जुट गए हैं।

राज्य की सियासत में अरुण यादव पिछड़ा वर्ग का बड़ा चेहरा हैं, इसके साथ ही उनके पास सहकारिता और किसान पृष्ठभूमि विरासत में है।

यादव के पिता राज्य के सहकारिता और कृषि जगत के बड़े नेता रहे हैं, साथ ही उप मुख्यमंत्री पद की भी कमान संभाली, तो दूसरी ओर उनके छोटे भाई सचिन यादव कमलनाथ सरकार में कृषि मंत्री रहे और वर्तमान में विधायक हैं।

अरुण यादव की पिछले दिनों दिल्ली में सोनिया गांधी से मुलाकात हुई और उसके बाद राज्य के समीकरण तेजी से बदलते नजर आने लगे।

राज्य की राजनीति में दिग्विजय सिंह के बाद अरुण यादव

कमलनाथ को सियासत में मैनेजमेंट का मास्टर माना जाता है और समन्वय की राजनीति उन्होंने बीते पांच दशक में की है। कमलनाथ रविवार को अपने साथ अरुण यादव को धार्मिक स्थल ले गए, जहां दोनों ने धार्मिक अनुष्ठान भी किए। इसे सियासी तौर पर काफी अहम माना जा रहा है।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि राज्य की राजनीति में दिग्विजय सिंह के बाद अगर कोई ऐसा राजनेता है जिसकी पूरे प्रदेश में पहचान है तो वह अरुण यादव हैं।

इसकी बड़ी वजह है कि वह प्रदेश अध्यक्ष रहते हुए राज्य के लगभग हर हिस्से में सक्रिय नजर आए और कार्यकतार्ओं से उनका सीधा संपर्क और संवाद रहा है। उनकी राजनीतिक विरासत समृद्ध है। वहीं वर्तमान दौर में पिछड़े वर्ग को लेकर सियासी घमासान है और ऐसे में कांग्रेस अरुण यादव का बेहतर उपयोग करना चाहती है।

पार्टी के भीतर ही गाहे-बगाहे कुछ लोग अरुण यादव को कटघरे में खड़ा करने की कोशिश करते रहे हैं और यह प्रचारित किया जाता रहा है कि वे दल भी बदल सकते हैं, मगर अरुण यादव ने अपनी कार्यशैली से कभी भी ऐसा संदेश नहीं दिया कि वे कांग्रेस छोड़ने वाले हैं। उनका जवाब हमेशा एक ही होता है कि वे ज्योतिरादित्य सिंधिया नहीं है।