बेंगलुरु: कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल ने ‘टूलकिट’ मामले में जलवायु कार्यकर्ता दिशा रवि को बेल मिलने पर खुशी जाहिर की है।
साथ ही कहा कि अधीनस्थ न्यायपालिका ने राजद्रोह कानून के दुरुपयोग को लेकर सवाल उठाना शुरू कर दिया है।
उन्होंने कहा, दिशा रवि की जमानत से पता चलाता है कि बड़ी अदालतों ने राजद्रोह के मामले में ‘वेट एंड वॉच’ को चुना, लेकिन अधीनस्थ न्यायपालिका ने राजद्रोह कानून के दुरुपयोग को लेकर पूछताछ शुरू कर दी है।
दिल्ली की एक सत्र न्यायालय ने जलवायु कार्यकर्ता दिशा रवि को जमानत दे दी है।
दिशा पर दिल्ली में चल रहे किसानों के विरोध प्रदर्शन के सिलसिले में सोशल मीडिया के लिए जारी ‘टूलकिट’ विवाद में शामिल होने का आरोप है। उन्हें दिल्ली पुलिस ने गिरफ्तार किया था।
दिल्ली पुलिस को झटका देते हुए एक स्थानीय अदालत ने सोशल मीडिया पर किसानों के विरोध प्रदर्शन से संबंधित “टूलकिट” कथित रूप से साझा करने के मामले को लेकर देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार जलवायु कार्यकर्ता दिशा रवि को यह कहकर जमानत दे दी कि पुलिस द्वारा पेश किए गए साक्ष्य अल्प एवं अधूरे हैं।
अदालत ने कहा कि पेश किए गए सबूत 22 वर्षीय युवती को हिरासत में रखने के लिए पर्याप्त नहीं है जिसकी कोई आपराधिक पृष्ठभूमि नहीं है।
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश धर्मेंद्र राणा ने कहा कि किसी भी लोकतांत्रिक राष्ट्र में नागरिक सरकार की अंतरात्मा के संरक्षक होते हैं। उन्हें केवल इसलिए जेल नहीं भेजा जा सकता क्योंकि वे सरकार की नीतियों से असहमत हैं।
अदालत ने रवि को एक लाख रुपये के निजी मुचलके और इतनी ही राशि की दो जमानत भरने पर यह राहत दी।
18 पृष्ठ के एक आदेश में, न्यायाधीश राणा ने पुलिस द्वारा पेश किए गए सबूतों को अल्प और अधूरा बताते हुए कुछ कड़ी टिप्पणियां कीं।
बेंगलुरु की रहने वाली दिशा को अदालत के आदेश के कुछ ही घंटों बाद मंगलवार रात तिहाड़ जेल से रिहा कर दिया गया।
एक अधिकारी ने कहा, जेल अधिकारियों द्वारा दिशा की रिहाई से संबंधित सारी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद उन्हें रिहा कर दिया गया।”
दिशा को दिल्ली पुलिस के साइबर सेल ने 13 फरवरी को उनके बेंगलुरु स्थित घर से गिरफ्तार किया था।
न्यायाधीश राणा ने कहा कि दिशा रवि और प्रतिबंधित संगठन ‘सिख फॉर जस्टिस के बीच प्रत्यक्ष तौर पर कोई संबंध स्थापित नजर नहीं आता है।
अदालत ने कहा कि अभियुक्त का स्पष्ट तौर पर कोई आपराधिक इतिहास नहीं है।
न्यायाधीश ने कहा, अल्प एवं अधूरे साक्ष्यों को ध्यान में रखते हुए, मुझे 22 वर्षीय लड़की के लिए जमानत न देने का कोई ठोस कारण नहीं मिला, जिसका कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं है।”
न्यायाधीश ने कहा कि उक्त ‘टूलकिट’ के अवलोकन से पता चलता है कि उसमें किसी भी तरह की हिंसा के लिए कोई भी अपील नहीं की गई है।
अदालत ने कहा, ”मेरे विचार से, किसी भी लोकतांत्रिक राष्ट्र में नागरिक सरकार की अंतरात्मा के संरक्षक होते हैं।
उन्हें केवल इसलिए जेल नहीं भेजा जा सकता क्योंकि वे सरकार की नीतियों से असहमत हैं।
अदालत ने कहा कि किसी मामले पर मतभेद, असहमति, विरोध, असंतोष, यहां तक कि अस्वीकृति, राज्य की नीतियों में निष्पक्षता को निर्धारित करने के लिए वैध उपकरण हैं।