नई दिल्ली: राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली (संशोधन) विधेयक, 2021 पर केंद्र और दिल्ली सरकार आमने-सामने आ गई हैं। वहीं, कांग्रेस पार्टी भी इस विधेयक पर केंद्र सरकार को कठघरे में खड़ा कर रही है।
पार्टी के दिग्गज नेता, पूर्व केंद्रीय मंत्री और सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा है कि इस विधेयक से ‘सत्ता का अंहकार’ झलकता है। उन्होंने विधेयक को गैर-कानूनी और देश के संघीय ढांचे के खिलाफ बताया।
कपिल सिब्बल ने कहा कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली (संशोधन) विधेयक, 2021 गैर-संवैधानिक है। यह संघीय ढांचे के खिलाफ है। निर्वाचित सरकार पर अंकुश लगाने वाला है।
विधायकों को पिंजड़े में जकड़ा प्रतिनिधित्व बना देता है। आखिर में उन्होंने कहा है कि इस सरकार (केंद्र की मोदी सरकार) में घर कर गई सत्ता के अंहकार की भावना का एक और उदाहरण है।
उल्लेखनीय है कि दिल्ली के मुख्यहमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी इस बिल को ‘अंसवैधानिक और अलोकतांत्रिक’ करार दिया है।
हालांकि केंद्र में सत्ता रूढ़ भाजपा का कहना है कि इससे केंद्र और दिल्ली सरकारों के बीच तालमेल बिठाना आसान हो जाएगा।
केजरीवाल ने एक ट्वीट में कहा केंद्र की भाजपा सरकार संसद में असंवैधानिक और अलोकतांत्रिक बिल लेकर आई है, इस विधेयक के पास होने के बाद दिल्ली की जनता द्वारा चुनी हुई सरकार की बजाय उपराज्यपाल ही दिल्ली सरकार बन जाएंगे।
दिल्ली् विधानसभा में विपक्ष के नेता रामवीर सिंह बिधूड़ी का दावा है कि इस विधेयक से दिल्ली का शासन-प्रशासन बेहतर होगा और प्रमुख प्रशासनिक मामलों में राज्यी सरकार और उपराज्यकपाल की संवैधानिक भूमिकाएं स्पशष्ट- हो जाएंगी।
वहीं, दिल्ली भाजपा के चीफ आदेश गुप्ता ने कहा कि इस विधेयक से आखिरकार केंद्र और दिल्ली् की सरकारों के बीच के प्रशासनिक कार्यों और शक्तियों का विवाद खत्मा हो जाएगा।
कांग्रेस पहले ही कह चुकी है कि इस विधेयक से दिल्लीफ के लोगों की शक्तियां छीन ली जाएंगी।
पूर्व विधायक अनिल भारद्वाज ने कहा दिल्ली सरकार के पास पहले से ही जमीन और पुलिस को लेकर कोई ताकत नहीं है, यह बिल उसे और कमजोर करेगा।
पार्टी ने इसे ‘काला बिल’ बताते हुए बुधवार को इसके खिलाफ जंतर मंतर पर धरना देने का भी ऐलान किया।
सूत्रों के अनुसार इन बदलावों का मतलब यह होगा कि राजधानी का दर्जा किसी अन्यर केंद्रशासित प्रदेश जैसा हो जाएगा।
ध्यान रहे कि लोकसभा में सोमवार को एक विधेयक पेश किया गया है जिसमें दिल्ली के उप-राज्य पाल को ज्यागदा अधिकार दिए जाने का प्रावधान है। यह भी स्पयष्ट किया गया है कि राज्यर कैबिनेट या सरकार के किसी भी फैसले को लागू करने से पहले एलजी की राय जरूरी होगी।