झारखंड

कल झारखंड में मनाया जाएगा ‘करमा पर्व’, जानिए इस पर्व का महत्व और इससे जुड़ी खास बातें

‘Karma Parv’  In Jharkhand: झारखंड में करमा पर्व (Karma Festival) बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। खासकर आदिवासी समाज के लोग हर्षोल्लास के साथ यह पर्व मनाते हैं।

इस वर्ष झारखंड में कल यानी 14 सितंबर को करमा पर्व मनाया जाएगा। तो अगर आप भी करमा पर्व के बारे में जानना चाहते हैं तो आज हम आपको इस पर्व के बारे में सब कुछ बताने जा रहे हैं।

इस पर्व की तैयारी एक सप्ताह पहले से ही शुरू हो जाती है। पर्व करने वाली बहनें ‘जावा उठाने’ की प्रक्रिया करती हैं, जो पूजा की एक महत्वपूर्ण परंपरा मानी जाती है।

‘जावा उठाने’ की परंपरा

करमा पूजा से सात दिन पहले गांव की युवतियां सुबह नदी या तालाब पर जाकर स्नान करती हैं और बांस की नई टोकरी (छोटी डलिया) और पूजा का सामान साथ लेकर जाती हैं।

वहां से बालू उठाकर उसमें गेहूं, मकई, जौ, चना, और धान जैसे बीज बोए जाते हैं, जिसे ‘जावा उठाना’ कहा जाता है। इस टोकरी को करमयतीन (करमा पूजा करने वाली युवतियां) करम देवता का प्रतीक मानती हैं और सात दिनों तक इसे घर में सुरक्षित स्थान पर रखती हैं। इस दौरान डलिया की पूजा होती है, जिसमें उसे पानी, धूप आदि दिया जाता है।

जावा जगाने की परंपरा

जावा उठाने के बाद युवतियां सुबह-शाम डलिया को आंगन में रखकर उसके चारों ओर गोलाकार में घूमते हुए जावा गीत गाती हैं और नृत्य करती हैं, जिसे ‘जावा जगाना’ कहा जाता है।

करमा पूजा के दिन जावा गीत और नृत्य झारखंड में बेहद प्रचलित होते हैं। मान्यता है कि तीज के पारण के दिन सुहागिनें मिट्टी से बने गौर-गणेश की पूजा करती हैं और उसे विसर्जित करती हैं। इसी दिन करमयतीन करमा का बालू उठाती हैं।

वहीं करमा पूजा के दिन, युवतियां निर्जला व्रत रखती हैं, जबकि छोटी बच्चियां फल-शरबत का सेवन कर उपवास करती हैं। अंतिम दिन करमयतीन पारंपरिक परिधान पहनकर सात बार जावा जगाती हैं और करमा पूजा करती हैं। वहीं रातभर लोकगीत और नृत्य चलता है, और सुबह जावा को नदी या तालाब में विसर्जित कर इस महापर्व का समापन होता है।

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