कोलकाता: पश्चिम बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ ने सात मार्च से विधानसभा सत्र बुलाने की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की सिफारिश वापस कर दी थी कि यह प्रस्ताव संवैधानिक मानदंडों को पूरा नहीं करता है।
कुछ दिनों बाद सोमवार को ममता ने कहा कि कारण जाने भी प्रतिरोध करना कुछ लोगों का कर्तव्य बन गया है।
मुख्यमंत्री ने कहा, कुछ लोग हैं, जिनका मैं सम्मान करती हूं, अनादर नहीं करती। अनादर दिखाना मेरे संविधान में नहीं है।
बिना कारण जाने भी बाधा डालना उनका कर्तव्य बन गया है। मैं नहीं जानती वह ऐसा क्यों कर रहे हैं। इससे चीजों में बेवजह देरी हो रही है।
ममता ने आगे कहा, राज्यपाल ने फाइल लौटा दी। मैं मुख्यमंत्री हूं और मैंने फाइल पर हस्ताक्षर किए हैं। वह कह रहे हैं कि इसे कैबिनेट से मंजूरी मिले और तब फाइल भेजें।
मुख्यमंत्री ने दावा किया कि वह कैबिनेट की आवाज हैं।
उन्होंने कहा, हालांकि, इसके बावजूद मैं सभ्य बनने और कैबिनेट द्वारा अनुमोदित फाइल भेजने की कोशिश कर रही हूं।
ममता उस घटना का जिक्र कर रही थीं, जब धनखड़ ने 7 मार्च से विधानसभा सत्र बुलाने की मुख्यमंत्री की सिफारिश को यह कहते हुए वापस कर दिया कि प्रस्ताव संवैधानिक मानदंडों को पूरा नहीं करता है।
धनखड़ ने एक वीडियो ट्वीट में कहा था, संविधान राज्यपाल को कैबिनेट की सिफारिश पर सदन का सत्र बुलाने की अनुमति देता है। यह संविधान में लिखा गया है और यह प्रक्रिया व्यवसाय के नियम में भी निर्धारित है।
उन्होंने कहा, सरकार ने मुझे 17 फरवरी को एक फाइल भेजी थी, जिसमें 7 मार्च को विधानसभा सत्र बुलाने की मांग की गई थी। हालांकि, उस पर मुख्यमंत्री के हस्ताक्षर थे। मगर इस स्थिति में कैबिनेट का फैसला जरूरी है।
उन्होंने कहा, मेरे पास एकमात्र विकल्प यह था कि फाइल सरकार को वापस भेज दी जाए, ताकि वह संवैधानिक अनुपालन के साथ इसे फिर से भेज सके। जैसे ही फाइल आएगी, इस मामले पर संविधान के अनुसार विचार किया जाएगा।
ममता ने पहले आरोप लगाया था कि राज्यपाल ने कई फाइलों को रोक दिया है, जिससे राज्य के विकास में देरी हुई।
जवाब में धनखड़ ने कहा था कि उनके पास कोई फाइल लंबित नहीं है और अगर लंबित है तो जिम्मेदारी राज्य सरकार की है, न कि राजभवन की।