नई दिल्ली: दिल्ली हाई कोर्ट ने बीमार पिता को अपना लीवर देने की अनुमति देने की 17 वर्ष के एक नाबालिग की मांग पर सुनवाई करते हुए इंस्टीट्यूट ऑफ लीवर एंड बिलियरी सायंसेज (ILBS) के मेडिकल सुपरिंटेंडेंट को तलब किया है।
दरअसल आईएलबीएस के वकील कोर्ट को ये बता पाने में नाकाम रहे कि नाबालिग बच्चे का कौन-कौन सा टेस्ट करना है। उसके बाद कोर्ट ने आईएलबीएस के मेडिकल सुपरिंटेंडेंट को खुद आकर कोर्ट में पूरा तथ्य रखने का निर्देश दिया।
कोर्ट ने कहा कि आईएलबीएस के वकील पिछली दो सुनवाईयों में सवालों का अस्पष्ट उत्तर दे रहे हैं। ऐसा नहीं चल सकता है।
उसके बाद कोर्ट ने आईएलबीएस के मेडिकल सुपरिंटेंडेंट को कोर्ट में स्वयं पेश होने का आदेश दिया। सुनवाई के दौरान आईएलबीएस की ओर से पेश वकील सिद्धार्थ पांडा ने कहा कि नाबालिग का बीएमआई लेवल कम है। उसका कुछ टेस्ट पहले ही हो चुका है।
कोर्ट ने आईएलबीएस के मेडिकल सुपरिंटेंडेंट को तलब करने के अलावा अस्पताल प्रबंधन को निर्देश दिया कि वो ये बताए कि याचिकाकर्ता का अब तक कौन-कौन सा टेस्ट किया गया है और किन-किन टेस्ट की रिपोर्ट का इंतजार किया जा रहा है।
इसके पहले कोर्ट ने कहा था कि अगर कोई व्यक्ति नाबालिग है इसका मतलब ये नहीं है कि वो ट्रांसप्लांटेशन ऑफ ह्यूमन आर्गन्स एंड टिश्युज एक्ट के तहत अपना कोई अंग दान नहीं कर सकता है।
याचिका सौरभ सुमन ने दायर की है। याचिका में कहा गया है कि उसके पिता बीमार हैं और उन्हें लीवर ट्रांसप्लांट की जरूरत है।
याचिका में कहा गया है कि आईएलबीएस ने उसके बड़े भाई और उसकी मां को स्वास्थ्य कारणों से अपना अंग दान करने की अनुमति नहीं दी थी। उसके बाद याचिकाकर्ता को भी अंग दान करने की अनुमति नहीं यह कहकर नहीं दी गई कि वो नाबालिग है।
याचिका में कहा गया है कि ट्रांसप्लांटेशन ऑफ ह्यूमन आर्गन्स एंड टिश्युज एक्ट के तहत ऐसी कोई रोक नहीं है कि नाबालिग अपना अंग दान नहीं कर सकता है। अस्पताल के इसी आदेश के खिलाफ याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है।