नई दिल्ली: अफगानिस्तान में तालिबान का कब्जा होने के बाद लोगों को एक और डर सता रहा है।
दरअसल लोग अपनी सुरक्षा के लिए डिजिटल आईडी मिटा देना चाहते हैं।
वहां के लोगों को ये भी डर है कि तालिबान उन्हें बायोमैट्रिक डेटाबेस और डिजिटल हिस्ट्री के आधार पर उन्हें ट्रैक न कर सके।
ये डिजिटल आईडी आधार की तरह ही है जो भारत में लोगों की के लिए यूज किया जाता है।
गौरतलब है कि अफगानिस्तान में भी भारत की तरह ही लोगों की डिजिटल आइडेंटिटी तैयार की गई है।
वोटिंग के लिए डिजिटल आईडी कार्ड्स बने थे, जिसमें उनका बायोमैट्रिक डेटा भी शामिल था।
लोगों को डर हैं कि उन पर अटैक करने के लिए इनका यूज अब तालिबान कर सकता है।
रिपोर्ट के मुताबिक ह्यूमन राइट्स फर्स्ट ग्रुप ने लिखा है, हम समझते हैं कि अब तालिबान अफगानिस्तान के लोगों के बायोमैट्रिक डेटाबेस और इक्विप्मेंट को ऐक्सेस करने वाला है’ डेटाबेस ऐक्सेस करने का मतलब तालिबान के पास यूजर्स के फिंगरप्रिंट्स होगा, फेशियल डेटा होगा और साथ ही आईरिस स्कैन्स होगा।
इससे उन्हें वैसे लोगों की पहचान करने में आसानी होगी जो तालिबान की मुखालफत करते रहे हैं।
अमेरिका के कुछ प्राइवेसी ग्रुप फारसी लैंग्वेज में गाइड जारी कर रहे हैं। कि कैसे वहां के यूजर्स अपनी डिजिटल हिस्ट्री डिलीट कर सकते हैं।
रिपोर्ट के मुताबिक पांच साल पहले भी तालिबान ने सरकार के बायोमैट्रिक सिस्टम को यूज करके सिक्योरिटी फोर्स को टारगेट किया था।डेटाबेस में उनके फिंगरप्रिंट भी निकाले गए थे।
गौरतलब है कि इस कहीं भी यूजर का डिजिटल डेटाबेस पर इस तरह का खतरा रहता है। क्योंकि जब तक यूजर्स का डिजिटल डेटाबेस सही हाथों में है ठीक है, जैसे ही इनका लिंक गलत हाथों में गया यूजर्स तबाह हो सकते हैं।