नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा फ्री वैक्सीन की घोषणा के बाद विपक्ष और सोशल मीडिया में सरकार के आलोचक एक बात का दवा कर रहे हैं कि सरकार ने यह फैसला सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद लिया है।
हालांकि भारत सरकार के सूत्र इस दावे को सिरे से खारिज करते हैं। टीकाकरण के विकेंद्रीकृत मॉडल का एक महीना पूरा होने के बाद 1 जून को पीएम के समक्ष मुफ्त टीकाकरण की योजना पेश की गई थी।
पीएम ने बैठक में सैद्धांतिक मंजूरी दी थी और इसकी नींव 1 जून को ही रख दी गई थी। आज प्रधानमंत्री के द्वारा इसकी घोषणा की गई।
आपको बता दें कि कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने कहा, ”मनमोहन सिंह, सोनिया गांधी और राहुल गांधी ने पिछले कई महीनों में बार-बार यह मांग रखी कि 18 साल से अधिक उम्र के लोगों को मुफ्त टीका लगना चाहिए, लेकिन मोदी सरकार ने इससे इनकार कर दिया।
फिर उच्चतम न्यायालय ने मोदी जी और उनकी सरकार को कटघरे में खड़ा किया।
” कांग्रेस महासचिव ने कहा, ”फिलहाल खुशी है कि हर नागरिक को मुफ्त टीका मुहैया कराने की मांग सरकार ने आधे-अधूरे ढंग से मान ली है।
प्रधानमंत्री आज भी अपने मुंह मियां मिट्ठू बने। देर आए, लेकिन पूरी तरह दुरुस्त नहीं आए।
” ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने सोमवार को कहा कि 18 साल से अधिक आयु के सभी लोगों के टीकाकरण के वास्ते राज्यों को केंद्र द्वारा निशुल्क टीका उपलब्ध कराए जाने की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की घोषणा उच्चतम न्यायालय के हस्तक्षेप का परिणाम जान पड़ती है।
मोदी के संबोधन को लेकर हैदराबाद के सांसद ने एक के बाद एक ट्वीट करके कहा कि निजी अस्पतालों का 25 फीसदी कोटा जारी रहेगा ताकि अमीर लोगों को आसानी हो जबकि गरीबों को टीके की उपलब्धता का इंतजार करना होगा।
ओवैसी ने ट्वीट कर कहा, एक और गैर-जरूरी भाषण के लिए प्रधानमंत्री का धन्यवाद, जिसकी जानकारी प्रेस विज्ञप्ति के जरिए भी दी जा सकती थी।
टीका नीति को लेकर बदलाव उच्चत न्यायालय के आदेश का परिणाम जान पड़ता है।
हालांकि, भयानक टीका नीति का आरोप राज्यों पर मढ़ दिया गया। मोदी टीका आपूर्ति सुनिश्चित करने में नाकाम रहे।