नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सजा के खिलाफ सांसदों और विधायकों की अपील को सुनवाई के लिए बाकी केस के मुकाबले कोई प्राथमिकता नहीं दी जाएगी।
सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि सांसदों और विधायकों के खिलाफ मुकदमे का जल्द ट्रायल से उनका ये मतलब नहीं है कि दोषी करार दिए जाने के खिलाफ या सजा को निलंबित करने की उनकी अपील पर हाई कोर्ट बिना नंबर आए सुनवाई करेगा।
सुप्रीम कोर्ट ने लंबित मामलों को लेकर कड़ी आपत्ति जताते हुए कहा कि हाई कोर्ट ने अधिकतर मामलों में रोक लगा रखी है और जांच एजेंसी हाई कोर्ट से रोक हटाने की मांग क्यों नहीं करती है या सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा रही हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर आपत्ति जताई कि सांसदों और विधायकों के खिलाफ लंबित आपराधिक मामलों में 10 से 15 साल के लिए चार्जशीट दाखिल नहीं करने का कोई कारण नहीं है।
सिर्फ संपत्ति जब्त करने से कुछ नहीं होगा। जांच लंबित रखने का कोई कारण नहीं है।
उल्लेखनीय है कि एमिकस क्युरी विजय हंसारिया ने सुप्रीम कोर्ट में स्टेटस रिपोर्ट दायर कर कहा है कि मुजफ्फरनगर दंगा मामले में यूपी सरकार ने 77 मुकदमे वापस ले लिए हैं।
एमिकस क्यूरी ने रिपोर्ट में यह भी कहा है कि इन मामलों को वापस लेते समय कोई तर्कपूर्ण आदेश पारित नहीं किया गया था। हाई कोर्ट से इन मामलों की जांच कराई जा सकती है।
सुप्रीम कोर्ट ने 10 अगस्त को सुनवाई के दौरान कहा था कि कोई भी राज्य जनप्रतिनिधियों के केस बिना हाई कोर्ट की अनुमति के वापस न ले।
कोर्ट ने कहा था कि सभी हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल अपने चीफ जस्टिस को सांसदों और विधायकों के खिलाफ लंबित मामलों की सुनवाई जारी रखें। कोर्ट उनके उन मामलों के जल्द निपटारे की निगरानी के लिए स्पेशल बेंच गठित करेगा।
सुनवाई के दौरान इस मामले में ईडी की स्टेटस रिपोर्ट अखबारों में छपने पर नाराजगी जताई थी और कहा कि मीडिया को सब कुछ पहले मिल जाता है।
एजेंसी कोर्ट को कुछ नहीं देती। ईडी के हलफनामे में केवल आरोपियों की सूची है।
दरअसल एमिकस क्युरी विजय हंसारिया ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि यूपी सरकार मुजफ्फरनगर दंगों के आरोपित भाजपा विधायकों के खिलाफ 77 मामले वापस लेना चाहती है।
इसी तरह कर्नाटक सरकार विधायकों के खिलाफ 61 मामलों को वापस लेना चाहती है। उत्तराखंड और महाराष्ट्र सरकार भी इसी तरह केस वापस लेना चाहती है।
उसके बाद कोर्ट ने आदेश दिया था कि कोई भी राज्य जनप्रतिनिधियों के केस बिना हाई कोर्ट की अनुमति के वापस न ले।