जैसलमेर: सीमा पार से आ रही तेज धूल भरी आंधियों और हवाओं के कारण जैसलमेर बॉर्डर पर रेत के बड़े-बड़े टीले (धोरे) अपने स्थान बदलते रहते हैं।
तेज अंधड़ में कई बार सीमा सुरक्षा बल की तारबंदी उसमें दब जाती है या धोरों के बीच झूलती नजर आती है जिससे कई बार घुसपैठ का खतरा बना रहता है।
तेज आंधियां सीमा पर लगी तारबंदी को नुकसान भी पहुंचाती हैं। इस समस्या से निपटने के लिए सीमा सुरक्षा बल अब विशेष तकनीक की मदद लेने जा रही है, इससे रेतीले टीलों को रोका जा सकेगा।
सीमा सुरक्षा बल सीमांत मुख्यालय राजस्थान फ्रंटियर के महानिरीक्षक पंकज गूमर ने अपने जैसलमेर दौरे के दौरान बताया था कि सीमा पार से घुसपैठ और मादक पदार्थों की तस्करी के खतरे को देखते हुए तथा टीबा स्थिरीकरण के लिए केंद्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान (काजरी) द्वारा पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर रेतीले टीलों को रोकने की एक विशेष तकनीक तैयार की गयी है।
जिससे स्थान बदलने वाले धोरों (शिफ्टिंग सैंड ड्यून्स) की परेशानियों को दूर किया जा सके।
पायलट प्रोजेक्ट के तहत एक किलोमीटर लंबे और एक किलोमीटर चौड़े क्षेत्र में स्थानीय पौधे और मुरठ घास लगाकर उसके परिणामों को देखा जाएगा।
उसके बाद सरहद पर स्थान बदलते टीलों को रोकने में कामयाबी मिलेगी।
मार्च से लेकर जून तक पाकिस्तान की तरफ से तेज धूल भरी आंधी आने से रेत के टीले अपनी जगह से दूसरी जगह शिफ्ट होते रहते हैं।
जैसलमेर का शाहगढ़ बल्ज और इससे लगते आसपास के कई इलाकों में यह अधिक देखने को मिलता है।
ऐसे में काजरी ने मूरठ घास सहित अन्य झाड़ियां लगाने की तकनीक विकसित की है। इनकी जड़ें बहुत गहरी होती हैं और कम पानी में रह जाती हैं।
इनकी ऊंचाई भी 2 से 3 फीट तक ही होगी ताकि तस्कर व घुसपैठिए इनकी आड़ में अंदर प्रवेश नहीं कर सकें।