नई दिल्ली: सीबीएसई CBSE की 12वीं बोर्ड परीक्षा का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा और छात्रों की ओर से बोर्ड परीक्षाएं रद्द करने की अपील की गई।
खास बात यह है कि जिस मुकदमे की चर्चा देशभर में हुई उस मुकदमे में छात्राओं का पक्ष बेहद दमदार तरीके से रखने वाली एडवोकेट ममता शर्मा वकालत में सिर्फ 2 वर्ष का अनुभव हैं।
इतना ही नहीं, एडवोकेट ममता शर्मा ने भी केस लड़ने के लिए छात्रों से कोई फीस नहीं ली।
33 वर्षीय वकील ममता शर्मा ने कहा, शुरूआत में 12वीं कक्षा में पढ़ने वाले केवल कुछ छात्रों ने ही उनसे संपर्क किया।
सोशल मीडिया जैसे ट्विटर, गूगल, वीडियो कांफ्रेंस के जरिये छात्र जुड़ते गए। देखते ही देखते बहुत जल्द 40,000 से ज्यादा छात्र उनसे जुड़ गए।”
दरअसल 12वीं की बोर्ड परीक्षाओं को लेकर लाखों छात्र सोशल मीडिया पर काफी सक्रिय थे।
छात्र परीक्षाएं रद्द करने के लिए एक प्रकार का ऑनलाइन अभियान चला रहे थे। एडवोकेट ममता ने 7224 अभिभावकों का एक खास ग्रुप बनाया गया।
ममता के मुताबिक उन्हें सबसे उन्हें सबसे अजीब यह लगा कि जब दसवीं की परीक्षाएं रद्द की जा चुकी है,तब फिर 12वीं के छात्रों को किस आधार पर कोरोना के बीच परीक्षाएं देने के लिए कहा जा सकता है?
ममता ने कहा,3 मई को सुप्रीम कोर्ट में पहली अपील दायर की गई। अपील में सुधार के बाद 5 मई को फिर से पिटीशन डाली गई।
दिल्ली में कोरोना संक्रमण फैले होने के बावजूद वह स्वयं सुप्रीम कोर्ट गई और रजिस्ट्री में अपनी पिटीशन को लेकर पूछताछ की। ”
युवा वकील ने बताया कि 27 मई को उनकी पिटीशन स्वीकार कर ली गई और 28 से इस पर सुनवाई शुरू पर सुनवाई शुरू हुई।
ममता शर्मा ने बताया कि वह 12वीं के छात्रों के लिए ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्नों वाला टेस्ट लिए जाने के पक्ष में भी नहीं थी, क्योंकि इस प्रकार का टेस्ट देना एक अलग प्रक्रिया है। इसके लिए विशेष अभ्यास की जरूरत होती है।