नई दिल्ली: JNU के पूर्व छात्र संघ के अध्यक्ष और सीपीआई नेता कन्हैया कुमार जल्द कांग्रेस के साथ अपनी नई राजनीतिक पारी की शुरुआत कर सकते हैं।
कन्हैया कब और किस पद पर पार्टी में शामिल होंगे, इसको लेकर चर्चा अंतिम दौर में है।
ऐसे में पार्टी के अंदर यह सवाल जोर पकड़ने लगा है कि कन्हैया से पार्टी को क्या फायदा होगा।
कन्हैया इन दिनों राजनीतिक बियाबान में भटक रहे हैं। वह सीपीआई नेतृत्व से नाराज हैं।
ऐसे में उन्हें कांग्रेस का मंच मिलता है, तो उनका सियासी कद बढ़ जाएगा। पर इससे पार्टी को क्या लाभ होगा, कांग्रेस इसी नफा-नुकसान के आंकलन में जुटी है।
कई नेता मानते हैं कि इससे बिहार में पार्टी को संभलने का मौका मिल सकता है। यह नेता कन्हैया को चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर के साथ जोड़कर देख रहे हैं।
वर्ष 2020 के चुनाव से पहले जब प्रशांत ने ‘बात बिहार की’ की शुरुआत की थी, तो उन्होंने कन्हैया कुमार को ‘बिहार का बेटा’ बताया था।
उस वक्त यह अटकलें भी लगी थी कि प्रशांत और कन्हैया साथ आ सकते हैं। कन्हैया को कांग्रेस में लाने में भी प्रशांत अहम भूमिका निभा रहे हैं।
प्रशांत के खुद भी पार्टी में शामिल होने की संभावना है। ऐसे में कन्हैया के शामिल होने को प्रशांत की बिहार में कांग्रेस को मजबूत करने की भविष्य की रणनीति से जोड़कर देखा जा रहा है।
वहीं, कन्हैया के विरोधियों का तर्क है कि वह जनाधार वाले नेता नहीं है। लोकसभा चुनाव में बेगुसराय में बड़े अंतर से उनकी हार हुई थी।
जबकि इस सीट पर करीब 19 फीसदी भूमिहार और 15 प्रतिशत मुसिलम मतदाता हैं।
इसके अलावा पार्टी में कन्हैया से बड़े कद के कई भूमिहार नेता हैं। पार्टी गुजरात में हार्दिक पटेल को शामिल कर यह प्रयोग कर चुकी है।
सबके बावजूद कांग्रेस कन्हैया में एक युवा नेता की छवि देख रही है, जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर सीधे हमला करता है और अपनी बात पूरी बेबाकी के साथ रखता है।
नेतृत्व संकट से जूझ रही कांग्रेस कन्हैया के जरिए युवाओं को अपनी तरफ खींचने की कोशिश कर सकती है। पर यह दांव कितना कारगर साबित होगा, यह वक्त तय करेगा।