कोलकाता: कांग्रेस की मुश्किलें पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में हार के बाद बढ़ती जा रही हैं।
पार्टी जहां एक तरफ पंजाब और राजस्थान में अंदरूनी कलह में जूझ रही है, वहीं यूपीए के घटकदल भी पार्टी को कमजोर करने का कोई मौका नहीं छोड़ रहे हैं।
घटक दलों के इस कदम से कांग्रेस उन राज्यों में भी अपना दबदबा खो सकती है, जहां वह गठबंधन में सबसे बड़ा दल है।
राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी ने चुनाव से पहले कांग्रेस से आए पीसी चाको को केरल प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंपी है।
कांग्रेस एनसीपी के इस कदम को शक की निगाह से देख रही है। कांग्रेस में रहते हुए पीसी चाको ने संगठन में कई अहम जिम्मेदारियां संभाली है।
ईसाई समुदाय में उनकी अच्छी खासी पकड़ है। ऐसे में कांग्रेस के लिए अपना परंपरागत वोट बचाए रखना चुनौती होगा। ज्यादातर ईसाई मतदाता कांग्रेस को वोट करते रहे हैं।
केरल कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि हार के बाद पार्टी कार्यकर्ता और नेता मायूस हैं।
कई नेता पार्टी नेतृत्व से भी नाराज हैं। पर उनके पास अभी तक कोई दूसरा विकल्प नहीं था।
पीसी चाको के प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद यह नेता और कार्यकर्ता एनसीपी में शामिल हो सकते हैं।
खुद चाको भी खुद को साबित करने के लिए कुछ नेताओं को तोड़ सकते हैं।
पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में भी यूपीए के घटक दल होने के बावजूद एनसीपी ने तृणमूल कांग्रेस का समर्थन किया था।
एनसीपी के अलावा राजद, झामुमो और शिवसेना भी मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के साथ थी।
जबकि इससे पहले एनसीपी, राजद और जेएमएम कांग्रेस की अगुआई में पश्चिम बंगाल में चुनाव लड़ती थी और उन्हें एक-दो फीसदी वोट मिलता रहा है।
पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि सभी क्षेत्रीय पार्टियों की यह कोशिश रही है कि कांग्रेस कमजोर हो, क्योंकि उन्हें पार्टी की कमजोरी का फायदा मिलता है।
केरल में पीसी चाको के जरिए एनसीपी अपना जनाधार बढ़ाने की कोशिश कर रही है।
इस चुनाव में एनसीपी ने एक फीसदी वोट के साथ दो सीट पर जीत हासिल की है।
कांग्रेस और सीपीएम का वोट प्रतिशत लगभग बराबर है, पर चुनाव में सीपीएम को 62 और कांग्रेस सिर्फ 21 सीट पर जीत दर्ज पाई।