नई दिल्ली: देश में कोरोना से होने वाली मौत को लेकर पिछले कई महीनों से जारी बहस पर अब विराम लगता दिखाई पड़ रहा है।
सवोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार को कोरोना संक्रमण से होने वाली मौत के मामले में मृत्यु प्रमाण पत्र देने और दिशानिर्देशों को सरल बनाने के आदेश दिए थे।
आदेश का पालन करते हुए अब केंद्र सरकार ने नई गाइडलाइन जारी कर दी है।
भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद ने सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार कोरोना से होने वाली मौत के मामलों में आधिकारिक दस्तावेज जारी करने के लिए अपने दिशानिर्देश जारी कर दिए हैं।
सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा में केंद्र सरकार ने बताया है कि देश के महापंजीयक कार्यालय ने तीन सितंबर को ही मृतकों के परिजनों को मौत की वजह के साथ चिकित्सा प्रमाण पत्र देने का सर्कुलर जारी कर दिया था।
केंद्र सरकार की ओर से साफ किया गया है कि कोरोना संक्रमण में उन मामलों को भी शामिल कर लिया गया है, जिसका पता, आरटी-पीसीआर जांच, मालिक्यूलर जांच, रैपिड-एंटीजन जांच या किसी अस्पताल में हुई जांच से चलता है।
सरकार के नए आदेश में कहा गया है कि कोरोना के वो मामले जिसमें मरीज स्वस्थ नहीं हो सका और उसकी मौत हो गई तो उसे कोरोना से होने वाली मौत में ही शामिल किया जाएगा।
भले ही इन मामलों में मेडिकल सर्टिफिकेट आफ काज आफ डेथ जन्म और मृत्यु के पंजीकरण अधिनियम 1969 की धारा 10 के अनुसार फार्म 4 और 4 ए के रूप में पंजीकरण प्राधिकारी को जारी क्यों ना कर दिए गए हों।
अगर कोई मरीज कोरोना से संक्रमित है और उसकी मौत कोरोना का पता चलने के 30 दिन के अंदर हो जाती है तो उसे कोरोना डेथ ही माना जाएगा।
इसके साथ ही किसी मरीज को कोरोना हुआ लेकिन वह 30 दिन से ज्यादा समय तक अपना इलाज कराता रहा, लेकिन वह 30 दिनों से अधिक समय तक उसी एंट्री के तहत लगातार भर्ती रहा और बाद में उसने दम तोड़ दिया। इस तरह के मरीजों की मौत को भी कोविड-19 से हुई मौत माना जाएगा।
सरकार के नए दिशानिर्देशों के मुताबिक जहां मत्यु से कारणों का प्रमाणपत्र (एमसीसीडी) जारी होने की सुविधा उपलब्ध नहीं हैं या फिर एमसीसीडी की ओर से दिए गए कारण से कोई संतुष्ट नहीं है तो ऐसे मामलों को देखने के लिए राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों को जिला स्तर पर एक समिति का गठन किया जाएगा। ये समिति इस तरह के मामलों का निपटारा करेगी।