नई दिल्ली: कोविड-19 की दूसरी लहर ने भारत में खूब कहर बरपाया है।
पिछले करीब तीन महीनों में दूसरी लहर के कारण मौतों का आंकड़ा साढ़े तीन लाख के करीब पहुंच गया है।
वैज्ञानिकों के अनुसार, दूसरी लहर के पीछे सबसे बड़ा कारण वायरस का डेल्टा वेरिएंट (बी.1.617) है।
इस वेरिएंट और इसके सब-लीनिएज (बी.1.617.2) के चलते ही दूसरी लहर में रोज तीन-तीन लाख से ज्यादा मामले दर्ज हुए।
डेल्टा वेरिएंट अपने से पहले मिले अल्फा वेरिएंट (बी.1.1.7) से 50 प्रतिशत ज्यादा संक्रामक है।
यह रिसर्च नैशनल सेंटर फॉरडिजीज कंट्रोल और आईएनएसएसीओजी (भारत में जीनोम सीक्वेंसिंग करने वाली लैब्स का संघ) के वैज्ञानिकों ने की।
पता चला कि यूके में मिले अल्फा वेरिएंट के मुकाबले डेल्टा वेरिएंट 50 प्रतिशत ज्यादा तेजी से फैलता है।
टेस्ट किए सैम्पल्स में डेल्टा वेरिएंट का प्रतिशत जनवरी के मुकाबले फरवरी में 20 प्रतिशत, मार्च में 40 प्रतिशत तक बढ़ गया था।
डेल्टा वेरिएंट के सब-लीनिएज बी.1.617.2 में ई484क्यू म्यूटेशन नहीं था मगर टी478के आ गया। सैम्पल्स में इसकी मात्रा सबसे ज्यादा है।
जैसे-जैसे पॉजिटिविटी रेट बढ़ा, वैसे-वैसे इसका प्रतिशत भी बढ़ता चला गया। स्टडी में कहा गया है कि अल्फा वेरिएंट का केस फैटिलिटी रेशियो डेल्टा के मुकाबले ज्यादा था।
हालांकि स्टडी कहती है कि अभी सीएफआर में बदलाव के बी.1.617.2 से सीधे कनेक्शन के सबूत नहीं मिले हैं।
डेल्टा वेरिएंट सभी राज्यों में मिला है मगर इसने सबसे ज्यादा दिल्ली, आंध्र प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, तेलंगाना और ओडिशा में लोगों को संक्रमित किया।
यही राज्य कोविड-19 की दूसरी लहर में सबसे ज्यादा प्रभावित हुए।ब्रेकथ्रू इन्फेक्शंस यानी वैक्सीनेशन के बाद होने वाले इन्फेक्शन में भी इसकी बड़ी भूमिका रही है।
बी.1.617 का पहला केस पिछले साल अक्टूबर में महाराष्ट्र से आया था। इसे ‘डबल म्यूटेशन’ वेरिएंट कहा गया।
‘डबल म्यूटेशन’ का मतलब वायरस के स्पाइक प्रोटीन में आए दो बदलावों ई484क्ये और एल452आर से है।
मगर वेरिएंट के सब-लीनिएज बी.1.617.2 में ई484क्यू म्यूटेशन नहीं है। अबतक यह वेरिएंट दुनिया के 60 से ज्यादा देशों में फैल चुका है।