नई दिल्ली: कोरोना संक्रमण के मामले कम होने संबंधी खबरों से तीन कृषि कानूनों के खिलाफ धरना दे रहे प्रदर्शनकारी किसानों ने राहत की सांस ली है।
ऐसा कहा जा रहा था कि संक्रमण के मामलों के चलते प्रदर्शन स्थलों पर किसानों की संख्या कम होती जा रही है।
हालांकि किसानों का दावा है कि कोरोना संक्रमण का असर सिंधू, टीकरी और गाज़ीपुर बॉर्डर पर लगभग नहीं के बराबर था।
जम्हूरी किसान सभा के महासचिव कुलवंत सिंह संधू ने कहा कि लोगों की संख्या कम नहीं थी, बल्कि हमारे द्वारा खुद प्रशासन के आग्रह पर लोगों की तादाद को आंदोलन स्थल पर कम रखा था।
संधू ने कहा, दिल्ली की सीमाओं पर अभी करीब 60-70 हजार लोग बैठे हुए हैं। एक दो-दिन में इनकी संख्या एक लाख हो जाएगी, मगर हम इससे ज्यादा लोग नहीं आने देने वाले है।
उन्होंने कहा, प्रशासन ने हमसे कहा था कि हम (प्रशासन) कोई कार्रवाई नहीं करने वाले, इसलिए लोगों को न बुलाएं।
कोरोना के बावजूद तीनों आंदोलन स्थलों से संक्रमण के मामले नहीं आने के सवाल पर संधू ने कहा, कोरोना का कोई मामला होगा,तब हम क्यों नहीं बताएंगे? हम जीवन देने के लिए लड़ रहे हैं…जीवन खोने के लिए थोड़ी लड़ रहे हैं।
उन्होंने दावा किया सिंघू बॉर्डर पर दो मौत कोरोना वायरस से हुई ऐसा बताया जा रहा था, लेकिन वे कोरोना से नहीं हुई थीं।
एक व्यक्ति की मौत शुगर बढ़ने से और दूसरे की मौत दिल का दौरा पड़ने से हुई थी।
हालांकि आंदोलन में आए लोगों का कहना है कि कुछ लोगों में खांसी, जुकाम के लक्षण दिखे लेकिन वे दो-तीन दिन में ठीक हो गए।
गाजीपुर बॉर्डर पर ‘प्रोग्रेसिव मेडिकोस एवं साइंटिस्ट फ्रंट (पीएमएसएफ) के चिकित्सा शिविर में काम कर रहे अनिल भारतीय ने कहा, गाज़ीपुर में कोविड के मामले नहीं आए हैं।
कुछ लोगों में लक्षण जरूर दिखे थे, लेकिन नियमित दवाई देने के बाद दो-तीन दिन में ठीक हो गए।
उन्होंने कहा कि मई के मध्य में सिर्फ दो लोगों ने तेज बुखार की शिकायत की थी जिनमें से एक वापस गांव चला गया जबकि दूसरा यहां उपलब्ध दवा से ठीक हो गया।
टीकरी बॉर्डर पर स्थित चिकित्सा शिविर के फार्मेसिस्ट ने बताया कि खांसी, ज़ुकाम और बुखार के मरीज आए जरूर, लेकिन वे तीन दिन में ठीक हो गए और किसी को भी पृथक करने की जरूरत नहीं पड़ी।
शिविर में स्वयंसेवक के रूप में काम कर रहे युवक ने बताया कि लोग यहां पर कोविड उपयुक्त व्यवहार, मसलन दो गज की दूरी या नियमित तौर पर मास्क पहनने का पालन नहीं कर रहे हैं, फिर भी यहां मामले नहीं आ रहे हैं।
वहीं एक अन्य युवक ने बताया कि आंदोलन स्थलों से संक्रमण के मामले नहीं आने पर कहा कि किसान खेतों में भरी दोपहरी काम करते हैं, भैंस का ताज़ा दूध पीते हैं जिससे उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत हो जाती है,इसकारण कोरोना के जबर्दस्त प्रकोप के बावजूद आंदोलन में मामले नहीं आए।