कोलकाता: अफगानिस्तान में बने हालात को लेकर टिप्पणी करते हुए भारतीय वायु सेना के पूर्व प्रमुख अरूप राहा ने कहा कि भारत को ऐसे हालात में सैन्य हस्तक्षेप से बचना चाहिए।
चीन और पाकिस्तान तालिबान के साथ हाथ मिलाकर जवाबी कार्रवाई कर सकते हैं।
सोमवार को राहा ने कहा कि मुझे नहीं लगता कि भारत को वहां जमीन पर उतरकर परेशानी में पड़ना चाहिए।
अफगानिस्तान में सैन्य भागीदारी खतरनाक है और भारत को अमेरिकियों या नाटो बलों के भविष्य के ऐसे किसी भी कदम का हिस्सा नहीं बनना चाहिए।
अफगानिस्तान के बारे में कहावत को याद दिलाते हुए कि उन्होंने कहा कि यह साम्राज्यों का कब्रिस्तान है।
संयुक्त राज्य अमेरिका (यूएसए) 2001 और 2021 के बीच यहां दो हजार से अधिक सैनिकों को खो चुका है।
देश की वायु सेना का 01 जनवरी 2014 से 31 दिसंबर 2016 तक नेतृत्व करने वाले राहा ने कहा कि संयुक्त राज्य अमेरिका ने रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण अफगानिस्तान को खाली कर दिया है, जो कई मध्य एशियाई देशों के साथ सीमा साझा करता है।
चीन, पाकिस्तान और यहां तक कि रूस जैसे देशों को लगता है कि वे अब तालिबान प्रशासित अफगानिस्तान में अपना हित साध सकते हैं।
चीफ ऑफ स्टाफ कमेटी के पूर्व अध्यक्ष राहा ने कहा कि तालिबान किसी की भी नहीं सुन रहा है। चीन विकास के नाम पर पैसे देकर उन्हें खुश करने की कोशिश कर रहा है।
उन्होंने कहा कि चीनी शिनजियांग प्रांत में तालिबान के शामिल होने की संभावना से सावधान हैं।
वहां कम्युनिस्ट सरकार के प्रशासन ने कथित तौर पर उइगर मुसलमानों के साथ गलत व्यवहार किया और उनका दमन और उत्पीड़न किया।
अरूप राहा ने दावा किया कि आने वाले दो से पांच सालों के भीतर अफगानिस्तान को संभालने में तालिबान विफल होगा और अपने आप वहां हालात बिगड़ेंगे।
उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के ठीक बाद चीन दुनिया का पहला ऐसा देश था, जिसने तालिबान से रिश्ते बेहतर करने और अपने राजनयिक संबंधों को बरकरार रखने की घोषणा की थी।
यह उनके इरादों का संकेत है और भारत को सोच समझकर कदम उठाना चाहिए।