नई दिल्ली: कोरोना वायरस के डेल्टा स्वरूप से पार पाने में दुनिया के ऐसे देश भी असफल हो रहे हैं, जिनकी संक्रमण पर काबू करने के लिए नजीर दी जाती थी।
जब पूरी दुनिया कोरोना की पहली लहर से जूझ रही थी तो चीन, ऑस्ट्रेलिया समेत सात देशों की जीरो टॉलरेंस रणनीति के जरिए लंबे वक्त तक स्थानीय संक्रमण पर नियंत्रण रखा था।
पर डेल्टा वेरिएंट ने इस रणनीति को चुनौती दी है। स्थानीय स्तर पर संक्रमण फैलने पर प्रभावित क्षेत्रों में ऑस्ट्रियाई सरकार कड़ी तालाबंदी लागू करने की रणनीति अपनाती रही है।
इससे त्रस्त होकर अब लोग तालाबंदी के खिलाफ सड़कों पर प्रदर्शन करने लगे हैं जिनके हिंसक हो जाने की खबरें आती रहती हैं।
इस वक्त न्यू साउथ वेल्स राज्य कोरोना का हॉटस्पॉट बना हुआ है और अबतक का सबसे सख्त लॉकडाउन जारी है।
वहीं, लोग तालाबंदी के विरोध में सड़कों पर हैं। दबाव बढ़ने पर स्थानीय प्रशासन ने कहा कि डेल्टा वेरिएंट के कारण बढ़ रहे संक्रमण से निपटने के लिए तेजी से 50 फीसदी आबादी को टीका लगाया जाएगा ताकि तालाबंदी में ढील दी जा सके।
जिस वुहान से कोरोना संक्रमण की शुरूआत हुई थी, सालभर बाद डेल्टा वेरिएंट के कारण यह शहर संक्रमण की चपेट में है।
मध्य चीन के हुबेई प्रांत की राजधानी वुहान में तेजी से फैले संक्रमण से निपटने के लिए चीनी प्रशासन ने एकबार फिर आक्रमक ढंग से जांचें और कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग कराने की रणनीति अपनायी है।
सप्ताहभर में ही 1.1 करोड़ जनता की जांच कर दी गई जिसके लिए 2800 केंद्रों पर 28 हजार स्वास्थ्यकर्मी लगाए गए।
इस मामले में विदेश संबंध परिषद में कार्यरत वैश्विक स्वास्थ्य विशेषज्ञ हुआंग यानजोंग का कहना है कि अब तक चीन मुट्ठी भर नए मामले आने पर भी बड़े पैमाने पर जांचें और तालाबंदी की रणनीति अपनाता रहा है।
यहां टीकाकरण तो तेजी से हुआ पर जो दो टीके उपयोग किए जा रहे हैं, वे डेल्टा पर 50 और 79 फीसदी ही प्रभावी हैं। ऐसे में उन्हें बूस्टर डोज लगानी होंगी।
2020 में इस देश ने सख्त तालाबंदी, परीक्षण और ट्रेस सिस्टम के जरिए कोविड के बुरे दौर से खुद को बचाए रखा।
पर डेल्टा वेरिएंट फैलने के बाद पुरानी रणनीति कारगर नहीं हो सकी क्योंकि कोरोना का यह स्वरूप 200 फीसदी तक ज्यादा संक्रामक है।
विशेषज्ञों का आरोप है कि थाईलैंड सरकार ने अति आत्मविश्वास के चलते टीकाकरण को गंभीरता से नहीं लिया।
इसी का नतीजा था कि बीते माह बैंकॉक में अस्पतालों में जगह नहीं बची और मरीजों को रेलगाड़ियों से दूसरे शहर भेजा गया। कई लोग इलाज की कमी से मारे गए।