नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट के चर्चित जज जस्टिस रोहिंटन फली नरीमन सेवानिवृत्त हो रहे हैं।
हाल ही में जस्टिस नरीमन 8 राजनीतिक दलों पर 1 से 5 लाख रुपए तक का जुर्माना लगा कर चर्चा में रहे।
इन पार्टियों पर यह जुर्माना उन्होंने बिहार चुनाव के दौरान प्रत्याशियों के आपराधिक रिकॉर्ड मीडिया में प्रकाशित न करने के लिए लगाया था।
इससे कुछ दिन पहले उन्होंने उत्तर प्रदेश में कांवड़ यात्रा की अनुमति पर स्वतः संज्ञान लिया।
राज्य सरकार को विवश किया कि वह अनुमति वापस ले। लेकिन सिर्फ यही कुछ फैसले जस्टिस नरीमन का परिचय नहीं हैं।
जाने-माने कानूनविद फली नरीमन के बेटे रोहिंटन नरीमन अपने महान पिता की छाया से आगे निकले। अपनी अलग पहचान, अलग छवि बनाई।
13 अगस्त 1956 को जन्में रोहिंटन नरीमन ने वकील और जज के रूप में लगभग 40 साल के करियर में ऐसा बहुत कुछ किया कि लंबे अरसे तक उनकी बात होती रहेगी।
बेहद प्रतिभाशाली रोहिंटन के लिए 1993 में सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस एम एन वेंकटचलैया ने नियम बदल दिए थे।
तब तक 45 वर्ष की आयु के बाद ही किसी को वरिष्ठ वकील का दर्जा देने का नियम था। लेकिन उन्हें यह दर्जा 37 साल की उम्र में मिला।
2011 से 2013 के बीच रोहिंटन नरीमन भारत के सॉलिसीटर जनरल भी रहे। वकील के रूप में अपने अतिव्यस्त करियर के बीच नरीमन पारसी पुजारी की भी भूमिका निभाते रहे।
पश्चिमी शास्त्रीय संगीत और वाद्ययंत्रों का उन्हें बहुत ज्ञान है। साहित्य और न्याय शास्त्र में गहरी रुचि रखने वाले नरीमन ने कई किताबें लिखी हैं।
उन्होंने सिर्फ पारसी धर्म ही नहीं, सभी धर्मों का गहरा अध्ययन किया है। 2014 में वकील से सीधे सुप्रीम कोर्ट जज नियुक्त होने वाले नरीमन को धार्मिक विषयों से जुड़े लगभग सभी मामलों में बेंच का सदस्य रखा गया।
समाज में प्रचलित एक साथ 3 तलाक की व्यवस्था को निरस्त करने में उनकी अहम भूमिका रही।
केरल के सबरीमला मंदिर में 10 से 50 साल तक की महिलाओं को प्रवेश से रोकने को असंवैधानिक करार देने वाली बेंच के वह सदस्य रहे।
नागरिकों को संविधान से मिले मौलिक अधिकारों की रक्षा को लेकर जस्टिस नरीमन हमेशा सजग रहे।
इंटरनेट पोस्ट के लिए गिरफ्तारी की व्यवस्था वाली इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी एक्ट की धारा 66 ए को उन्होंने निरस्त करार दिया। उन्होंने माना कि यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार के विरुद्ध है।
निजता को मौलिक अधिकार करार देने वाली 9 जजों की बेंच के जस्टिस नरीमन सदस्य रहे।
वयस्कों के बीच आपसी सहमति से बने समलैंगिक संबंधों को अपराध के दायरे से बाहर करार देने वाली 5 जजों की बेंच में भी उनकी अहम भूमिका रही।
जस्टिस नरीमन के एक फैसले के चलते ही यह व्यवस्था बनी कि मृत्युदंड पाने वाले लोगों की पुनर्विचार याचिका पर खुली अदालत में कम से कम आधा घंटा सुनवाई हो।
इससे पहले बाकी पुनर्विचार याचिकाओं की तरह इन याचिकाओं पर भी जज बंद कमरे में विचार करते थे।
संविधान, न्याय-शास्त्र, साहित्य, संगीत और धर्म के अलावा जस्टिस नरीमन को आर्थिक कानूनों की भी गहरी समझ है।
अपने 7 साल के कार्यकाल के दौरान उन्होंने तमाम कॉरपोरेट विवादों पर सुनवाई की। बैंकिंग और इंसोल्वेंसी से जुड़े लगभग 100 फैसले उन्होंने दिए।
तेज़ गति से मामलों का निपटारा करने वाले जस्टिस नरीमन के दखल के बाद ही अयोध्या के बाबरी विध्वंस मामले के आपराधिक मुकदमे में तेज़ी आई।
उन्होंने मामले की सुनवाई की समय सीमा तय की। वह लगातार लखनऊ के विशेष जज से मामले में चल रही कार्रवाई का ब्यौरा लेते रहे। आखिरकार, पिछले साल 28 सालों से अटके इस मामले का फैसला आया।