चेन्नई: मद्रास उच्च न्यायालय की पहली पीठ में मुख्य न्यायाधीश संजीव बनर्जी और न्यायमूर्ति पी.डी. ऑडिकेसवालु ने सोमवार को हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्ती (एचआर एंड सीई) विभाग की एक सलाहकार समिति की बैठक की अध्यक्षता करने के कारण तमिलनाडु के मुख्यमंत्री के खिलाफ एक वकील द्वारा दायर जनहित याचिका खारिज कर दी।
वादी ने कहा कि मुख्यमंत्री को यह शपथ लिए बिना बैठक की अध्यक्षता करने से रोका जाना चाहिए कि वह हिंदू धर्म को मानते हैं, जो मानव संसाधन एवं सीई कर्मचारियों के लिए जरूरी है।
अदालत ने शुरुआती चरण में ही जनहित याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया और इसे पूरी तरह से शरारत करार दिया।
अदालत ने यह भी फैसला सुनाया कि वादी के अनुरोध में पूर्वाग्रह शामिल था और जनहित याचिका बेहद खराब थी।
मद्रास उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने वादी एस.श्रीधरन को संबंधित पीठ की स्पष्ट अनुमति प्राप्त किए बिना अगले पांच वर्षों के लिए उच्च न्यायालय में आगे जनहित याचिका दायर करने से रोक दिया।
अदालत ने हालांकि वादी पर कोई जुर्माना नहीं लगाया।
अदालत ने फैसला सुनाया कि कोई भी धर्म संकीर्णता या दूसरों को चोट पहुंचाने का उपदेश नहीं देता। वादी द्वारा व्यक्त की गई भावनाओं का उपहास नहीं किया जा सकता।
न्यायाधीशों ने कहा, यह एक धर्मनिरपेक्ष देश है। हालांकि संविधान किसी को भगवान या संविधान के नाम पर पद की शपथ लेने की अनुमति नहीं देता है।
अदालत ने यह भी कहा कि जब धर्म का पालन करने की बात आती है तो पूर्वाग्रह और प्रतिशोध को दूर किया जाना चाहिए।