नई दिल्ली: जमीयत उलेमा-ए-हिंद के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने भारतीय मुसलमानों से आह्वान किया है कि ईद-उल-अजहा का त्योहार सादगी के साथ मनाएं और प्रतिबंधित जानवरों की कुर्बानी बिल्कुल भी नहीं नहीं करें। उनका कहना है कि कोरोना महामारी अभी समाप्त नहीं हुई है।
इसलिए मस्जिदों या ईदगाहों में स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से जारी की गई गाइडलाइन को सामने रखते हुए ईदु-उल-अज़हा की नमाज़ अदा करनी चाहिए।
ज्यादा बेहतर है कि सूरज निकलने के बीस मिनट के बाद संक्षिप्त रूप से नमाज़ और खुतबा अदा करके कुर्बानी कर ली जाए और गंदगी को इस तरह दफन किया जाए कि उससे बदबू नहीं फैलने पाए।
मौलाना अरशद मदनी ने कहा है कि देश, विशेषकर उत्तर प्रदेश और कुछ अन्य राज्यों की परिस्थितियों को देखते हुए मुसलमानों को सलाह दी जाती है कि प्रतिबंधित जानवरों की कुर्बानी से बचें।
चूंकि मज़हब में इसके बदले में काले जानवरों की कुरबानी जायज़ है, इसलिए किसी भी फ़ितने से बचने के लिए इस पर संतोष करना उचित है।
अगर किसी जगह उपद्रवी काले जानवरों की कुर्बानी से भी रोकते हैं तो कुछ समझदार और प्रभावशाली लोगों द्वारा प्रशासन को विश्वास में लेकर कुरबानी की जाए।
यदि फिर भी ख़ुदा न करे कि मज़हबी वाजिबात को अदा करने का रास्ता न निकले तो जिस करीबी आबादी में कोई दिक़्क़़त न हो वहां पर कुर्बानी करा दी जाए लेकिन जिस जगह कुर्बानी होती आई है और फिलहाल दिक़्क़त है तो वहां कम से कम बकरे की कुर्बानी अवश्य की जाए और प्रशासन के कार्यालय में दर्ज भी करा दिया जाए ताकि भविष्य में कोई दिक़्क़त नहीं होने पाए।
वर्तमान परिस्थितियों से मुसलमानों को निराश नहीं होना चाहिए और परिस्थितियों का मुक़ाबला शांति, प्रेम और धैर्य से हर मोर्चे पर करना चाहिए।
कोरोना महामारी से सुरक्षा के लिए मुसलमानों को अधिक से अधिक अल्लाह से दुआ करनी चाहिए और तौबा व इस्तिगफ़ार (अल्लाह से अपने गुनाहों के क्षमा मांगना) अधिक से अधिक किया जाए।