नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर कर केंद्र और राज्यों को यह निर्देश देने की मांग की गई कि गैर-कोविड-19 मरीजों को भी पर्याप्त चिकित्सा उपचार और सुविधाएं सुनिश्चित की जाएं।
सुप्रीम कोर्ट ने याचिका में कहा कि जन स्वास्थ्य का अधिकार जीवन के मौलिक अधिकार का हिस्सा है।
वकील जी एस मणि द्वारा दायर याचिका में कहा कि कोविड-19 संक्रमण से करीब 2.70 लाख लोगों की मौत हुई।
हालांकि दूसरी लहर के बाद अधिकांश राज्यों ने प्रतिबंध लगाए और कोरोना मरीजों के इलाज के प्रोटोकॉल बनाए हैं।
ऐसे में हृदय, किडनी, लीवर और फेफड़ों की बीमारियों से ग्रसित मरीजों व गर्भवती महिलाओं को नियमित रूप से इलाज नहीं मिल पा रहा है।
न ही अस्पतालों में कोई जांच ही हो पा रही है। जिन लोगों को सर्जरी या ऑपरेशन की जरूरत है, उन्हें भी चिकित्सा सुविधाओं से महरूम रखा जा रहा है।
याचिका में कहा गया है कि हृदय रोगियों और गर्भवती महिलाओं के लिए अस्पताल में दाखिला लेना बहुत मुश्किल हो गया है।
कुछ निजी अस्पताल ऑनलाइन परामर्श प्रदान कर रहे हैं, लेकिन अधिकांश सरकारी अस्पतालों में ऐसी कोई सुविधा उपलब्ध नहीं है।
याचिकाकर्ता कहना है कि संविधान के अनुच्छेद-21 के तहत सभी नागरिकों को जीवन और जन स्वास्थ्य का अधिकार प्राप्त है।
याचिका में कहा गया है कि गैर-कोविड -19 रोगियों के लिए और अधिक सरकारी अस्पताल होने चाहिए। डॉक्टरों के मुताबिक, उन्हें कई इमरजेंसी कॉल आते हैं। लोगों में भ्रम की स्थिति है।
अस्पतालों की इमरजेंसी सेवाएं, कोविड -19 रोगियों से भरी होती है। इसलिए वहां दूसरे मरीज नहीं जा सकते।