नई दिल्ली: देश में कहर बरपाने वाली कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर जैसे-जैसे कमजोर पड़ती जा रही है, वैसे ही ‘किसान आंदोलन’ सक्रिय हो गया है।
इस बार किसानों ने कोरोना संक्रमण को ध्यान में रखते हुए एक खास रणनीति तैयार की है। अब ‘गुरिल्ला’ आंदोलन शुरू होगा।
सरकार को ये समझ नहीं आएगा कि कब कहां क्या हो जाए।
ये तय है कि इस नए आंदोलन में भाजपा के जनप्रतिनिधि, जिनमें मुख्यमंत्री, मंत्री, सांसद और विधायक शामिल हैं, इनकी राह मुश्किल हो सकती है।
किसान संगठनों का ‘काला झंडा’ इनका पीछा नहीं छोड़ेगा।
हरियाणा और पंजाब में भाजपा के जनप्रतिनिधियों के सामने हल्लाबोल कर उनका सार्वजनिक कार्यक्रमों में भाग लेना मुश्किल कर दिया था, अब वही तरीका उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में आजमाया जाएगा।
इसके बाद देश के दूसरे हिस्सों में भी भाजपा नेताओं को इसी तरह का विरोध झेलना पड़ सकता है।
ऑल इंडिया किसान खेत मजदूर संगठन के अध्यक्ष सत्यवान का कहना है कि केंद्र सरकार अब किसानों की मांगों को लेकर आपराधिक प्रवृति की राह पर चल पड़ी है।
यानी वह चाहती है कि ये आंदोलन लंबा खिंचता रहे और किसी तरह खुद ही बदनाम हो जाए।
सरकार पहले भी ऐसे प्रयास कर चुकी है। उन्होंने कहा कि इस बार किसान आंदोलन नए रूप और नए तौर तरीकों के साथ लोगों के सामने आ रहा है।
दिल्ली की सीमाओं पर आंदोलन चलता रहेगा, उसके अलावा ऐसी रणनीति बनाई गई कि ये आंदोलन देश के सभी जिलों में शुरू हो।
सोशल मीडिया के माध्यमों के जरिए किसान अपनी बात राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ले जाएंगे।
26 मई को किसान संगठन और सेंट्रल ट्रेड यूनियन मिलकर ‘काला दिवस’ मनाएंगी।