नई दिल्ली: हमारे देश में ईद-उल-अजहा यानी बकरीद का पर्व इस्लामिक कैलेंडर के हिसाब से 21 या 22 जुलाई को मनाया जाएगा।
बकरीद पर की जाने वाली जानवरों की कुर्बानी को लेकर अभी से ही तरह-तरह के सवाल उठाने शुरू हो गए हैं।
जानवरों की सुरक्षा के लिए काम करने वाले संगठन पीपुल्स फॉर दा एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनिमल (पेटा) ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर जानवरों की कुर्बानी पर रोक लगाने की मांग की है।
पेटा का कहना है कि संविधान में दिए गए अधिकारों के मुताबिक धार्मिक स्वतंत्रता के नाम पर जानवरों के साथ क्रूरता की जाती है। इसलिए संविधान में दिए गए इस तरह के अधिकारों पर प्रतिबंध लगाने की जरूरत है।
दूसरी तरफ ऑल इंडिया उलेमा बोर्ड ने कुर्बानी पर किसी भी तरह के प्रतिबंध की मांग की कड़ी आलोचना करते हुए इसे संविधान में दिए गए अधिकारों का खुला उल्लंघन करार दिया है।
उलेमा बोर्ड के अलावा कई मुस्लिम संगठनों ने केंद्र एवं राज्य सरकारों से कुर्बानी के लिए बाजार में बेचने के वास्ते लाए जाने वाले जानवरों और व्यापारियों की सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए जाने की भी मांग की है।
पेटा के मुख्य कार्यकारी अधिकारी मणिलाल बल्लियारे ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक पत्र लिखकर अपील की है कि पशु क्रूरता रोकथाम कानून 1960 की धारा 28 को हटाया जाना चाहिए।
उनका कहना है कि इस धारा के तहत किसी भी जानवर को धर्म के लिए किसी भी तरह से मारे जाने की इजाजत दी गई है।
उनका कहना है कि संविधान की यह धारा अहिंसा और करुणा की भूमि की भावना से अलग है।
भारत में संविधान के अनुच्छेद 51 ए (जी) के तहत सभी जीवित प्राणियों के लिए करुणा रखना जरूरी है।
उनका कहना है कि अनुच्छेद 28 में दिए गए अधिकार आधुनिक समाज में बहुत पुराने हो चुके हैं क्योंकि यह जानवरों को अनावश्यक दर्द और पीड़ा देते हैं। पशु बलि एक पुरानी प्रथा है।
जिस तरह से मानव बलि कानूनी अपराध है, उसी तरह से पशु बलि को भी कानूनी अपराध की श्रेणी में लाया जाना चाहिए।
ऑल इंडिया ऑल उलेमा बोर्ड के राष्ट्रीय महासचिव अल्लामा बुनई हसनी का कहना है कि इस्लाम धर्म में ईद-उल-अजहा के पर्व पर तीन दिनों तक हलाल पशुओं की कुर्बानी की जाती है।
संविधान ने भी मुसलमानों को कुर्बानी करने की इजाजत दी है। मुसलमान हमेशा से संविधान का सम्मान करते रहे हैं और हमेशा संविधान में दिए जाने वाले अधिकारों का शांतिपूर्वक पालन करते रहे हैं।
कुर्बानी पैगंबर हजरत इब्राहिम की सुन्नत है और इसको हर साल याद करने के लिए दी जाती है।
उनका कहना है कि कुर्बानी हमें यह सीख देती है कि अपनी सबसे बेहतरीन और पसंदीदा चीज को अल्लाह की राह में कुर्बान किया जाए।
मुसलमान इसीलिए हर साल जानवरों की कुर्बानी करते हैं। हमारे देश में भी सदियों से यह परम्परा चली आ रही है।
अल्लामा बुनई का कहना है कि सभी धर्मों में जानवरों की बलि या कुर्बानी का रिवाज है।
अब कुछ लोग पशुओं के साथ की जाने वाली क्रूरता के नाम पर कुर्बानी पर अंकुश लगाने की मांग कर रहे हैं जो कि किसी भी तरह से उचित नहीं है।
उनका आरोप है कि इन्हीं सब कारणों की वजह से देश के अंदर कई स्थानों पर जानवरों को ले जाते वक्त कई लोगों को भीड़ तंत्र के जरिए पीट-पीटकर मारे जाने की घटनाएं भी सामने आ रही है।
उनका कहना है कि इन घटनाओं को अंजाम देने वाले लोग कुंठित मानसिकता के शिकार हैं।
भीड़ का सहारा लेकर इस तरह के संगठन अपने गलत उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए काम कर रहे हैं।
इसलिए हम सरकार से मांग करते हैं कि वह इस तरह की किसी भी मांग पर ध्यान ना दिया जाए और ऐसे लोगों के खिलाफ कठोर कानूनी कार्रवाई की जानी चाहिए जो कि देश में शांति-व्यवस्था को भंग करने का प्रयास कर रहे हैं।
जमात-ए-इस्लामी हिंद और जमीअत उलेमा हिंद ने भी केंद्र व राज्य सरकारों से ईद-उल-अजहा के मौके पर जानवरों को बाजारों में बेचने के लिए ले जाने वालों की सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए जाने की भी मांग की है।