नयी दिल्ली: उच्चतम न्यायालय (SC) ने ”धार्मिक स्वरूप में बदलाव’’ के मुद्दे पर Jain Community (जैन समुदाय) के दो वर्गों के बीच विवाद से संबंधित याचिका पर विचार करने से इनकार करते हुए कहा है कि उपासना स्थल (Special Provisions) Act 1991 को एक ही धर्म के दो संप्रदायों के बीच विवाद में लागू नहीं किया जा सकता है।
शीर्ष अदालत श्वेतांबर मूर्तिपूजक जैन के तपगच संप्रदाय से संबंधित Mohjeet समुदाय के अनुयायी Sharad Zaveri और अन्य की ओर से दायर उस Petition पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें 1991 के Act को लागू करने और स्वरूप में बदलाव को रोकने की मांग की गयी थी।
यह Act किसी भी पूजा स्थल के उस धार्मिक चरित्र को बनाए रखने का प्रावधान करता है, जैसा 15 August, 1947 को था।
न्यायमूर्ति D Y Chandrachud और न्यायमूर्ति JB Pardiwala की पीठ ने कहा कि वर्तमान मामले में विवाद श्वेतांबर मूर्तिपूजक जैन समुदाय (Jain Community) के तपगच संप्रदाय के दो धड़ों के बीच में था।
शीर्ष अदालत ने कहा, ”उपरोक्त विवाद का समाधान केवल Article 32 के तहत Petition के बयानों और विपक्ष के जवाबी हलफनामों के आधार पर नहीं हो सकता।”
कानून में उपलब्ध अन्य उपायों के साथ आगे बढ़ने की आजादी दी जाती : पीठ
पीठ ने कहा, “याचिकाकर्ता (Petitioner) जिन अधिकारों का दावा करते हैं, उनकी प्रकृति को साक्ष्य के आधार (Nature of Evidence) पर स्थापित करना होगा।
जिन अधिकारों का दावा किया जाता है और अधिकारों के कथित उल्लंघन को भी सबूतों के आधार पर स्थापित करना होगा।’’
Supreme Court ने कहा कि नागरिक प्रक्रिया संहिता (Civil Procedure Code), 1908 की धारा 92 के तहत या इससे इतर भी एक मुकदमे के रूप में पर्याप्त उपाय उपलब्ध हैं।
पीठ ने कहा, “इस पृष्ठभूमि में, यह Court Constitution के Article 32 के तहत इस याचिका पर विचार करने के लिए इच्छुक नहीं है। याचिकाकर्ताओं को कानून में उपलब्ध अन्य उपायों के साथ आगे बढ़ने की आजादी दी जाती है।’’