नई दिल्ली: कोरोना की दूसरी लहर ने जहां देश की एक बड़ी आबादी को चपेट में लिया है। वहीं जिन लोगों को संक्रमण की चपेट में आने से पहले अन्य किसी तरह की बीमारी है उनमें कोरोना वायरस का गंभीर असर माना जा रहा है।
हालांकि एचआईवी रोगियों के मामले में स्थिति कुछ अलग ही सामने आई है जिसकी डॉक्टरों को भी उम्मीद नहीं थी।
नई दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) ने देश में पहली बार एचआईवी और कोरोना संक्रमण को लेकर सीरो सर्वे अध्ययन किया है जिसमें पता चला है कि आबादी की तुलना में एचआईवी रोगियों में कोरोना वायरस का संक्रमण काफी कम देखने को मिला है।
डॉक्टरों के लिए यह किसी आश्चर्य से कम नहीं है क्योंकि इन्हें अंदेशा था कि कम से कम 20 से 25 फीसदी एचआईवी रोगी अब तक संक्रमण की चपेट में आ चुके होंगे।
दिल्ली और आसपास के राज्यों में 14 फीसदी मिले
मेडिकल जर्नल मेडरेक्सिव में प्रकाशित इस अध्ययन के अनुसार दिल्ली और आसपास के राज्यों से एम्स आने वाले इन एचआईवी रोगियों की जब एंटीबॉडी जांच की गई तो पता चला कि 14 फीसदी ही संक्रमण की चपेट में आए हैं।
इन रोगियों में कम सीरो पॉजिटिविटी मिलने का अब तक कारण पता नहीं चला है लेकिन एम्स के डॉक्टरों का मानना है कि देश के अलग अलग चिकित्सीय संस्थानों में भी ऐसा अध्ययन होना चाहिए ताकि राष्ट्रीय स्तर पर पुख्ता जानकारी प्राप्त हो सके।
विशेषज्ञों को ज्यादा रोगियों के संक्रमित होने की आशंका
महामारी की शुरूआत से यह अंदेशा लगाया जा रहा है कि एचआईवी रोगियों में संक्रमण के घातक परिणाम हो सकते हैं।
इन मरीजों में कोरोना की मृत्यु दर भी काफी अधिक हो सकती है। यह इसलिए था क्योंकि दूसरे राज्यों में अन्य बीमारियों से ग्रस्त कमजोर प्रतिरोधक क्षमता वाले मरीजों में काफी गंभीर परिणाम देखने को मिल रहे हैं।
स्वास्थ्य मंत्रालय की एक रिपोर्ट के अनुसार साल 2019 में एचआईवी संक्रमित मरीजों की संख्या 23.49 लाख थी जोकि अब बढ़कर 24 लाख से अधिक होने का अनुमान है।
हालांकि इसी रिपोर्ट के अनुसार साल 2010 से 2019 के बीच 37 फीसदी मरीजों में कमी भी आई है।