Supreme Court angry at Madhya Pradesh High Court : मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के एक फैसले को लेकर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने अपनी नाराजगी जाहिर की है।
धोखाधड़ी और जालसाजी के एक मामले में Supreme Court ने 70 वर्षीय दृष्टिहीन बुजुर्ग आरोपी को जमानत मामले में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के प्रति नाराजगी जताई है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हमने यह नोटिस किया है कि हाईकोर्ट से बिना दिमाग लगाए स्टीरियो टाइप आदेश पारित किए जाते हैं।
सुप्रीम कोर्ट की अवकाश पीठ ने 70 वर्षीय एक दृष्टिहीन बीमार बुजुर्ग व्यक्ति की सजा को निलंबित करने की याचिका को खारिज करने के मामले में मप्र हाईकोर्ट के दृष्टिकोण पर आपत्ति जताते हुए नाराजगी जाहिर की है।
इसके साथ ही ट्रायल कोर्ट द्वारा लगाई गई शर्तों के अधीन उसकी रिहाई का आदेश भी दे दिया है। Supreme Court की अवकाश पीठ का इस मामले में कहना था, कि कोर्ट ने इस फैक्ट को नोटिस किया है कि हाईकोर्ट से बिना दिमाग लगाए स्टीरियो टाइप आदेश पारित किए जाते हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा, कि उच्च न्यायालय के इस तरह के आकस्मिक दृष्टिकोण की वजह से देश की सर्वोच्च अदालत के समक्ष यह विशेष अनुमति याचिका दायर की गई है।
सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा कि इस तरह की मुकदमेबाजी से आसानी से बचा जा सकता था, अगर उच्च न्यायालय ने कारावास की निश्चित अवधि की सजा के निलंबन को नियंत्रित करने वाले कानून के सही सिद्धांतों को लागू किया होता।
भेरुंलाल बनाम मप्र राज्य मामले में ट्रायल कोर्ट ने मध्य प्रदेश के मंदसौर जिले के भेरूलाल को धोखाधड़ी और आपराधिक साजिश के लिए 04 साल की कैद की सजा सुनाई थी।
न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और उज्जल भुइयां की पीठ ने यह इंगित करते हुए कि भेरूलाल 70 वर्षीय बीमार व्यक्ति हैं और 90प्रतिशत दृष्टिबाधित हैं, अत: कहा, कि कानून स्थापित करता है कि यदि ट्रायल कोर्ट द्वारा दी गई सजा अवधि तय है, तो अपीलीय अदालत द्वारा सजा के निलंबन की याचिका पर उदारतापूर्वक विचार किया जाना चाहिए, जब तक कि राहत को अस्वीकार्य करने के लिए मामले के रिकॉर्ड से कोई असाधारण परिस्थितियां न उभरें।
सुप्रीम कोर्ट की अवकाश पीठ ने इस संबंध में कहा कि हाईकोर्ट ने आदेश पारित करते हुए ऐसा कुछ भी नहीं देखा कि सजा को निलंबित करने की याचिका क्यों अस्वीकार की जानी चाहिए। वहीं High Court ने किसी असाधारण परिस्थिति के बारे में भी कुछ नहीं कहा है।
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि हाईकोर्ट को यह मालूम होना चाहिए था कि याचिकाकर्ता 70 वर्ष का एक बुजुर्ग है और चार साल की जेल की सजा में से दो साल पहले ही काट चुका है। वह वस्तुतः दृष्टिवाधित है।
इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि रिकॉर्ड से ऐसा कुछ भी दृष्टव्य नहीं है जो यह दर्शाता कि अपील लंबित रहने तक जमानत पर उनकी रिहाई से न्याय की प्रक्रिया बाधित होगी। इस परिस्थिति में उच्च न्यायालय पहली बार में ही सजा के निलंबन की याचिका पर आसानी से विचार कर सकता था।
सुप्रीम कोर्ट ने अपनी महत्वपूर्ण टिप्पणियों के साथ ही मप्र उच्च न्यायालय की इंदौर खंडपीठ के आदेश को रद्द कर आरोपी बुजुर्ग को जमानत दे दिया। जमानत देने के साथ सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी अत्यंत महत्वपूर्ण है।