Supreme Court: देश की शीर्ष अदालत सुप्रीम (Supreme Court) कोर्ट ने कहा है कि आरोपी को दोषी करार देने के बाद सजा दिया जाना लॉटरी की तरह नहीं होना चाहिए।
दोषी को सजा देने के मामले में अभी व्यापक तौर पर विषमताएं हैं, यह पूरी तरह जज पर निर्भर है।
Supreme Court ने केंद्र सरकार से सिफारिश की है कि वह सजा देने के मामले में एक समग्र नीति तैयार करे। इसके लिए छह महीने में रिपोर्ट पेश की जाए।
जस्टिस MM सुंदरेश और Justice SVN Bhati की बेंच ने कहा कि जज कभी भी दायरे से बाहर नहीं होना चाहिए। अनुच्छेद-14 और 21 के तहत यह बेहद अहम अधिकार है और यह सभी को मिला हुआ है।
शीर्ष अदालत ने कहा कि सजा पर बहस के दौरान CRPC की धारा-360 के तहत कोर्ट का दायित्व होता है कि वह तमाम तथ्यों पर विचार करे। इस दौरान आरोपित का व्यवहार आदि भी देखा जाता है।
दरअसल बिहार में POCSO का मामला दर्ज हुआ था। ट्रायल कोर्ट ने एक ही दिन में सुनवाई पूरी की। आरोप है कि आरोपित को बचाव का मौका नहीं देकर दो दिनों बाद मामले में फांसी की सजा दी गई। मामला हाई कोर्ट के पास पहुंचा।
हाई कोर्ट ने कहा कि CRPC के अलग-अलग प्रावधान का पालन नहीं हुआ। ट्रायल कोर्ट के फैसले को खारिज कर फिर से ट्रायल का आदेश हुआ। इस फैसले को Supreme Court में चुनौती दी गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने अपील खारिज कर निर्देश दिया कि Trial Court POCSO के तहत ट्रायल पूरा करे।
सजा देने के मामले में एक समग्र नीति तैयार करना जरूरी, केंद्र सरकार करे पहल
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कनाडा, न्यूजीलैंड, इस्राइल, ब्रिटेन में समग्र नीति तैयार है। इसके लिए लॉ कमिशन ने भी 2003 में रिपोर्ट पेश की थी।
तब लॉ कमिशन ने कहा था कि भारत में सजा देने को लेकर एक समग्र नीति तैयार की जानी चाहिए। अगर सजा को लेकर गाइडलाइंस बनती हैं तब निश्चित तौर पर इसका Criminal Justice System में काफी फायदा होगा। इस फैसले का दूरगामी असर भी देखने को मिल सकता है।