नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर केंद्र की वैक्सीनेशन नीति पर सवाल उठाया है। कोर्ट ने कहा कि केंद्र 45 साल से ज्यादा उम्र वालों के लिए राज्यों को वैक्सीन उपलब्ध करा रहा है।
फिर 18 से 45 साल वालों के वैक्सीन हासिल करने का जिम्मा राज्यों पर क्यों छोड़ दिया। कोर्ट ने केंद्र सरकार को वैक्सीनेशन नीति पर दो हफ्ते में जवाब देने का निर्देश दिया।
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्यों (दोनों) के वैक्सीन हासिल करने के लिए दी जा रही अलग-अलग कीमत पर भी सवाल उठाया।
कोर्ट ने कहा कि केंद्र चूंकि ज़्यादा मात्रा में वैक्सीन ले रहा है तो उसे कम कीमत देनी पड़ रही है लेकिन राज्य ज़्यादा क़ीमत क्यों दें। कोर्ट ने कहा कि पूरे देश में वैक्सीन की एक कीमत होनी चाहिए।
सुनवाई के दौरान केंद्र ने कहा कि इस साल के अंत तक 18 साल से ज्यादा उम्र के सभी लोगों को कोरोना से बचाव का टीकाकरण हो जाएगा।
केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि इस साल के अंत तक 18 से अधिक उम्र के सभी लोगों का टीकाकरण पूरा होने की उम्मीद है। घरेलू वैक्सीन निर्माता और स्पुतनिक के जरिये ये लक्ष्य पूरा हो पाएगा।
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा कि कुछ राज्य और म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन कोरोना की वैक्सीन के लिए ग्लोबल टेंडर निकाल रहे हैं, क्या यही देश की पॉलिसी है। क्या राज्यों पर छोड़ दिया गया है कि वह अपने लिए वैक्सीन मंगाएं।
कोर्ट ने कहा कि कई राज्यों के पास सीमित संसाधन हैं। कई राज्य ऐसे जिनका बजट बीएमसी से भी कम है।
अगर केंद्र 45 से अधिक उम्र के लोगों पर ज्यादा खतरा मानते हुए उनके लिए टीका दे सकता है तो बहुत गरीब तबके के लिए क्यों नहीं। ऐसा वर्ग अपने लिए वैक्सीन नहीं खरीद सकता है।
कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा कि क्या आप मानते हैं कि हर राज्य में 50 फीसदी ऐसे लोग हैं जो वैक्सीन खरीद सकते हैं। अनपढ़ और गरीब लोग कोविन ऐप के जरिये कैसे रजिस्टर करेंगे, ये एक बड़ा सवाल है।
आप डिजिटल इंडिया, डिजिटल इंडिया कहते रहते हैं लेकिन आप जमीनी वास्तविकताओं से अवगत नहीं हैं।
अगर एक कॉमन सेंटर पर भी रजिस्ट्रेशन की बात करें, तब भी झारखंड में सुदूर रहने वाला गरीब क्या वहां तक पहुंच पाएगा।
तब मेहता ने कहा कि ऑफलाइन रजिस्ट्रेशन में एक साथ कई लोगों के केंद्र पहुंचने की आशंका रहती है। हम उसको भी देख रहे हैं। मेहता ने कहा कि नीति में लगातार बदलाव भी हो रहा है।
कहीं-कहीं उपलब्धता के आधार पर केंद्र में सीधे वैक्सीनेशन की भी सुविधा शुरू हुई है।
तब कोर्ट ने कहा कि आप पूरी नीति हमारे सामने रखिए। हमें पूरे देश से जानकारी मिल रही है कि स्लॉट सेकेंडों में बुक हो जा रहे हैं। लोगों को स्लॉट नहीं मिल पा रहे हैं।
एमिकस क्युरी एमिकस जयदीप गुप्ता ने कहा कि हमें केंद्र की नीयत पर शक नहीं है लेकिन टीकाकरण नीति में दिक्कतें हैं। राज्यों को सीधे डील करने को कहा जा रहा है।
विदेशी निर्माता सीधे राज्यों से सौदा नहीं करना चाहते। तीसरा पहले की टीकाकरण नीति बेहतर थी। अब विकेंद्रीकरण कर दिया गया। हर राज्य की आर्थिक स्थिति एक सी नहीं है।
तब कोर्ट ने पूछा कि क्या यह सही नहीं होगा कि टीकाकरण नीति में हर आयु वर्ग के उन लोगों की पहचान हो, जिन्हें बीमारी से ज़्यादा खतरा है।
इस पर एमिकस क्युरी मीनाक्षी अरोड़ा ने कहा कि श्मशान में काम करने वालों को फ्रंटलाइन वर्कर नहीं माना जा रहा। उन्हें भी स्वास्थ्यकर्मियों जितना ही खतरा है। तब मेहता ने कहा कि यह गलत जानकारी है, उन्हें टीका लग रहा है।
एमिकस क्युरी जयदीप गुप्ता ने कहा कि अभी प्रतिमाह 15 करोड़ वैक्सीन निर्माण की क्षमता है। 6 महीने में लक्ष्य पूरा नहीं हो सकता है।
कई वैक्सीन जिनके दिसंबर में बनने की बात कही गई थी, अब तक विकसित नहीं हुए हैं। तब मेहता ने कहा कि हमने लक्ष्य उन वैक्सीन के आधार पर नहीं तय किया जो बने ही नहीं।
आप विस्तृत हलफनामे का इंतज़ार कीजिए। एमिकस मीनाक्षी अरोड़ा ने कहा कि कोविन पर रजिस्टर करने वालों को निजी हस्पतालों से फोन आ रहा है।
900 से एक हजार रुपये में वैक्सीन के लिए कह रहे हैं। एक परिवार के लिए चार हजार रुपये बड़ी रकम होती है। तब जस्टिस रविंद्र भट्ट् ने कहा कि नौ सौ रुपये भी तय कीमत नहीं है। केंद्र ने नियंत्रण नहीं किया।
अगर वैक्सीन की कमी हो तो अस्पताल दो हजार रुपये भी लेने लगेंगे। कोर्ट ने कहा कि खुद की कमी को स्वीकार करना मजबूती की निशानी होती है।
यहां सुनवाई किसी को नीचा दिखाने के लिए नहीं हो रही है। हमें पता है कि विदेश मंत्री आवश्यक चीजों के इंतजाम के लिए अमेरिका गए हैं।
यह स्थिति की गंभीरता को दिखाता है। तब मेहता ने कहा कि- खुद पीएम ने भी कई देशों से बात की है।