मुंबई: देश में म्यूकरमाइकोसिस या ब्लैक फंगस का संकट सिर्फ डाइबिटीज के मरीजों द्वारा स्टेरॉइड्स के इस्तेमाल से पैदा नहीं हो रहा है, बल्कि डॉक्टरों का कहना है कि एंटिबायोटिक्स से लेकर जिंक सप्लीमेंट्स और आयरन टैबलेट्स तक का ज्यादा उपयोग भी इसकी बड़ी वजह हो सकती है।
बांद्रा स्थित लीलावती अस्पताल के सीनियर एंडोक्राइनोलॉजिस्ट शशांक जोशी ने कहा, प्राथमिक कारण तो स्टेरॉइड्स का इस्तेमाल और डाइबिटीज ही है लेकिन बीते दो दिनों से मेडिकल कम्यूनिटी में इस बात की खूब चर्चा हो रही है कि करोड़ों भारतीय महीनों तक जिंक सप्लीमेंट का इस्तेमाल करते रहे हैं।
डॉ. जोशी भारत में माइक्रोमाइकोसिस के केस में अचानक उछाल पर शोध पत्र तैयार कर रहे हैं। भारत में दुनिया में किसी और देश से अधिक ब्लैक फंगस के केस पाए जाते हैं।
कोरोना काल से पहले भी यहां दुनियाभर से करीब 70 गुना ज्यादा केस थे, लेकिन दो महीने से भी कम वक्त में 8,000 केस आने से पूरी मेडिकल कम्यूनिटी हिल गई है।
डॉक्टरों ने भारतीय आर्युविज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) से माइक्रोमाइकोसिस के आउटब्रेक के कारणों का अध्ययन करवाने का आग्रह किया है जो दुर्लभ लेकिन गंभीर फंगल इन्फेक्शन है। यह संक्रमण म्यूकरमाइसीट्स मॉल्ड्स के कारण हो रहा है।
दशकों से हो रहे शोध के नतीजे बताते हैं कि मेटल जिंक फंगस और खासकर म्यूकरमाइसीट्स को बढ़ावा देने का कारक बनते हैं।
अध्ययनों में यह भी पाया गया है कि जिंक के अभाव में फंगस जिंदा नहीं रह सकती।
मार्च 2020 में, जब भारत में कोविड-19 महामारी शुरू हुई, तब से जिंक सप्लीमेंट पसंदीदा इम्यूनिटी बूस्टर बना हुआ है।
यही कारण है कि पिछले साल देश में यह सबसे ज्यादा बिकने वाली दवाओं में शामिल रहा।
कोच्ची के डॉक्टर राजीव जयदेवन ने कहा कि कोरोना की पहली लहर में हमें सार्स-कोव-2 के बारे में बहुत कम ज्ञान था। इस कारण इलाज में कई तरह की दवाइयों और कॉम्बेनेशनों को ट्राइ किया गया था।
देश के कई अन्य डॉक्टरों की तरह उनका भी मानना है कि म्यूकरमाइकोसिस के संकट के पीछे एक नहीं, अनेक कारण हैं।
कोरना वायरस, डाइबिटीज और स्टेरॉइड्स का कॉम्बिनेशन तो दुनियाभर में है, लेकिन म्यूकरमाइकोसिस का संकट सिर्फ भारत में ही पैदा हुआ है। इस बारे में डॉ. जयदेवन ने कहा भारत में कुछ न कुछ गुप्त कारक हैं जो खेल कर रहे हैं।
उन्होंने कहा कि पश्चिमी देशों में कोविड पीड़ितों में बुखार नियंत्रित रखने के लिए आम तौर पर पारासिटामल का इस्तेमाल किया जा रहा है, लेकिन भारत में हल्के लक्षणों वाले कोविड मरीज को पांच से सात दवाइयां दी जा रही हैं।
वो कहते हैं हम पारासिटामल के साथ-साथ विटामिन सप्लीमेंट्स, डॉक्सिसिलीन जैसा कोई एंटिबायोटिक और आइवरमेक्टिन जैसा एक एंटी-पैरासाइटिक का उपयोग कर रहे हैं।
उसके बाद भी भाप, काढ़ा और ना जाने-जाने कौन-कौन से घरेलू उपचार का सहारा लिया जा रहा है।
कनाडा स्थित मैकगिल यूनिवर्सिटी के महामारी विशेषज्ञ डॉ. मधुकर पाइ कहते हैं कि जिंक थिअरी पर आईसीएमआर और एनसीडीसी (राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र) की तरफ से तुरंत जांच होनी चाहिए।