नई दिल्ली: यूके के वैक्सीन टास्क फोर्स चीफ कैट बिंगम ने पिछले वर्ष कहा था कि महामारी से बचाव के लिए सिंगल डोज वैक्सीन ही काफी साबित हो सकती है।
इस वर्ष जनवरी में जॉनसन एंड जॉनसन (जेएंडजे) के प्रमुख वैज्ञानिक अधिकारी डॉ. पॉल स्टॉफल्स ने भी अपनी वैक्सीन के एक डोज को ही महामारी के खिलाफ सुरक्षा के लिहाज से पर्याप्त बताया। लेकिन, जब कुछ दिनों पहले भारत में कोविशील्ड की एक डोज दिए जाने की बात चली तो ट्विटर पर हंगामा बरप गया।
अगले ही दिन, नीति आयोग के सदस्य डॉ. वीके पॉल को स्पष्टीकरण देना पड़ा।
उन्होंने कहा कोविशील्ड की डोज के शेड्यूल में कोई परिवर्तन नहीं किया गया है। आगे भी दो डोज ही दी जाएगी।
ऐसे में यह जानना महत्वपूर्ण है कि क्या कोविशील्ड की एक डोज लगाने का विचार बेकार है या फिर इसमें कोई दम है।
ऑक्सफोर्ड वैक्सीन ग्रुप के डायरेक्टर और दुनियाभर में ‘ऑक्सफर्ड’ कोविड वैक्सीन के क्लीनिकल ट्रायल की देखरेख वाली टीम के प्रमुख प्रो. एंड्रयू जे पोलार्ड ने स्वीकार किया कि शुरूआत में कोविशील्ड को सिंगल डोज वैक्सीन के रूप में ही देखा गया था।
पहले योजना थी जल्द से जल्द ज्यादा से ज्यादा लोगों को सिंगल डोज देकर उनकी जान बचाने का प्रयास किया जाए, लेकिन यूके में लॉकडाउन की सफलता से हमें ट्रायल डेटा पर गौर करने का समय मिल गया।
हमने देखा कि जिन लोगों को वैक्सीन की दो डोज लगाई गई, वो कोविड-19 महामारी के खिलाफ एक डोज वैक्सीन लेने वालों के मुकाबले ज्यादा इम्यून हो गए।
उन्होंने कहा कि कोविशील्ड के क्लीनिकल ट्रायल से सामने आया कि इसकी एक डोज भी काफी कारगर है और जनवरी के बाद हुए टीकाकरण के उपलब्ध आंकड़ों से भी इसकी पुष्टि होती है।
इससे स्पष्ट होता है कि कोविशील्ड की सिंगल डोज से भी उच्चस्तरीय सुरक्षा मिलती है, क्योंकि एक डोज लेने के बाद संक्रमित हो गए व्यक्ति को अस्पताल में भर्ती होने की नौबत नहीं आ रही है।
ध्यान रहे कि ऑक्सफर्ड की वैक्सीन ही भारत में कोविशील्ड के नाम से जानी जाती है।
वैक्सीन की एक डोज दिए जाने के विचार के पीछे एक और बड़ा कारण कोविशील्ड जैसी वैक्सीन ‘वायरल वेक्टर’ भी एक डोज में ही पर्याप्त इम्यूनिटी दे रही है। जेएंडजे और स्पूतनिक लाइट जैसी वन शॉट वैक्सीन भी कोविशील्ड की तरह ही हैं।
हालांकि, पोलार्ड का कहना है कि एमआरएनए प्लैटफॉर्म से तैयार हुई वैक्सीन की दो डोज यूके में तीन माह के अंतराल पर लगाई जा रही है और वह भी संक्रमितों को अस्पताल में भर्ती होने से बचाने में सक्षम साबित हुई है।
बहरहाल, यह मान भी लें कि कोविशील्ड का एक ही शॉट पर्याप्त इम्यूनिटी पैदा कर देता है तो सवाल यह उठता है कि महामारी के खिलाफ मिली यह सुरक्षा कितने दिनों तक टिकाऊ होती है? उदाहरण के तौर पर, चीनी कंपनी कैनसिनो की वायरल वेक्टर वैक्सीन क्लीनिकल ट्रायल में 65.7 फीसदी प्रभावी पाई गई तो इसका एक शॉट लगाने को ही मंजूरी मिल गई।
ध्यान रहे कि जानसन एंड जानसन (जेएंडजे) की एफिकेसी रेट भी करीब-करीब यही है।
हालांकि, मैक्सिको से आई एक हालिया रिपोर्ट में पता चला कि वायरल वेक्टर वैक्सीन के एक शॉट से तैयार हुई इम्यूनिटी छह महीने के बाद बहुत तेजी से कम होने लगती है, इस कारण दूसरा शॉट लगाने का जरूरत महसूस की जा रही है।
मैक्सिको में 14 फीसदी टीकाकरण इसी वैक्सीन से किया गया।
इसी तरह, स्पूतनिक वैक्सीन बनाने वाली रूस की कंपनी के डायरेक्टर एलेक्जेंडर गिंट्सबर्ग ने जनवरी में कहा कि स्पूतनिक वी की एक डोज से कोविड के खिलाफ 3-4 महीने तक सुरक्षा मिलेगी।
स्पूतनिक वी भी स्पूतनिक लाइट की तरह ही है। हालांकि, जेएंडजे ने अपनी सिंगल डोज पॉलिसी को लेकर कभी कोई आशंका प्रकट नहीं की।
पोलार्ड का कहना है कि कोविशील्ड की एक डोज से तैयार इम्यूनिटी कितनी अवधि तक टिकती है, इसका स्पष्ट आंकड़ा तो नहीं है, लेकिन इतना जरूर है कि तीन महीने तक तो इम्यूनिटी बरकरार रहती है।
उन्होंने कहा इसका मतलब यह कतई नहीं है कि तीन महीने के बाद इम्यूनिटी नहीं रहती।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने पिछले वर्ष कहा था कि 50 फीसदी एफिकेसी रेट वाली वैक्सीन को अच्छा माना जाना चाहिए। हालांकि, यूके के हालिया आंकड़े बताते हैं कि भारत में पाए जाने वाले कोरोना वायरस के डेल्टा वेरियेंट (बी.1.617.2) के खिलाफ कोविशील्ड की एक डोज 33 फीसदी ही इफेक्टिव है।
पोलार्ड का कहना है कि अगर एफिकेसी रेट कम भी हो, लेकिन वैक्सीन लेने वाले लोगों को संक्रमण के बाद अस्पताल में भर्ती होने की जरूरत नहीं पड़ती है तो फिर सब ठीक है। लेकिन, अगर एक शॉट लेने वाले लोगों के संक्रमण के बाद अस्पताल जाने की नौबत बढ़ जाती है तो फिर यह चिंता का विषय है।