नई दिल्ली: उत्तर पूर्वी दिल्ली में पिछले साल भड़के दंगों के मामले में गैर कानूनी गतिविधि (रोकथाम) कानून के तहत गिरफ्तार जामिया मिल्लिया इस्लामिया एल्युमनी एसोसिएशन के प्रमुख शिफा-उर-रहमान ने मंगलवार को अदालत में पूछा कि दंगों को भड़ाकने के आरोप में केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर, भाजपा नेता कपिल मिश्रा और अन्य के खिलाफ प्राथमिकी क्यों दर्ज नहीं की गई है? जमानत अर्जी पर सुनवाई के दौरान, शिफा के वकील अभिषेक सिंह ने अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अमिताभ रावत को 30 जनवरी, 2020 को उनके द्वारा दायर एक शिकायत दिखाई, जिसमें ठाकुर, मिश्रा, एक अन्य भाजपा नेता परवेश वर्मा और जामिया में गोली चलाने वाले राम भक्त गोपाल के खिलाफ दंगा भड़काने के आरोप में प्राथमिकी दर्ज करने की मांग की गई थी।
सिंह ने कहा, हम जानना चाहते हैं कि क्या अभियोजन पक्ष ने उन्हें गवाह या आरोपी के रूप में बुलाने या नोटिस जारी करने की जहमत उठाई? क्योंकि उन्होंने क, ख, ग को गोली मारने को कहा इसलिए वे जानते हैं कि वे लोग कौन हैं।
उनके पास कम से कम कुछ सबूत तो होंगे। उनके खिलाफ प्राथमिकी क्यों नहीं दर्ज की गई? यही वह शिकायत थी जिसको मैं आगे बढ़ा रहा था।
धन मुहैया कराने के आरोप की ओर इशारा करते हुए, वकील ने पुष्टि की कि शिफा ने कुछ वित्तीय व्यवस्था की थी, लेकिन सवाल किया कि क्या कुछ प्रदर्शनकारियों को पैसा देने से यूएपीए के तहत अपराध बनाता है?
शिकायत के मुताबिक, वकील ने जो अदालत में पढ़ा , उसमें शिफा ने उल्लेख किया था कि मिश्रा ने एक रैली निकाली जिसमें गोली मारने के नारे लगाए गए, जिसके बाद ठाकुर ने 28 जनवरी, 2020 को कहा: देश के गद्दारों को… जनवरी 2020 को ठाकुर ने यहां एक चुनावी रैली में हिस्सा लेते हुए कथित रूप से कहा था देश के गद्दारों को… और भीड़ ने जवाब दिया था.. गोली मारो सालो को…. शिफा पर संशोधित नागरिकता अधिनियम (सीएए) और राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी) के खिलाफ विभिन्न धरना प्रदर्शनों के लिए धन इकट्ठा करने का आरोप है।
फरवरी 2020 में हुए दंगों का मास्टरमाइंड होने के आरोप में उनके और कई अन्य के खिलाफ आतंकवाद रोधी कानून के तहत मामला दर्ज किया गया है। इन दंगों में 53 लोगों की मौत हुई थी और 700 से ज्यादा जख्मी हुए थे।
वकील सिंह ने जोर दिया कि पूर्व छात्र संघ का सदस्य या अध्यक्ष या प्रदर्शनकारी होना कोई अपराध नहीं है क्योंकि लोग अपनी राय रखने के हकदार हैं और किसी भी चीज़ का शांतिपूर्वक विरोध कर सकते हैं।
वकील ने अदालत से कहा, मुझे क्यों फंसाया गया है? मैं यह समझने में विफल हूं। प्रदर्शन करना मौलिक अधिकार है।
अगर समाज का एक वर्ग किसी कानून से व्यथित है और उसका विरोध करता है, तो यह अपराध नहीं है। वे विरोध कर सकते हैं।
शिफा के वकील ने यह कहते हुए उनके लिए जमानत मांगी कि उनके मौलिक अधिकारों का व्यवस्थित तरीके से उल्लंघन हुआ है और उन्हें दंगाइयों की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता है।
उन्होंने यह दिखाने के लिए उनकी व्हाट्सएप चैट भी पढ़ीं कि इसमे हिंसा के लिए भड़काया नहीं गया है।
उनके अलावा, जेएनयू के पूर्व छात्र नेता उमर खालिद, जेएनयू की छात्राएं नताशा नरवाल और देवांगना कलिता, जामिया समन्वय समिति की सदस्य सफूरा जरगर, आप के पूर्व पार्षद ताहिर हुसैन और कई अन्य लोगों पर भी मामले में कड़े कानून के तहत मामला दर्ज किया गया है।