नई दिल्ली: जातीय जनगणना के मुद्दे पर भाजपा की उलझनें कम होने का नाम नहीं ले रही है।
बिहार में उसकी सहयोगी जनता दल (यू) के नेता मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इसकी मांग को लेकर कमान संभाले हुए हैं, वहीं राज्य में भाजपा दो फाड़ नजर आ रही है।
पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व भी इस पूरे मामले पर चुप है और राजनीतिक लाभ-हानि का अंदाजा लगाया जा रहा है।
हालांकि अभी इस मुद्दे पर कांग्रेस समेत कई प्रमुख दल भी चुप्पी साधे हुए हैं।
जातिवार जनगणना पर सबसे मुखर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हैं और इस नाते बिहार की राजनीति सबसे ज्यादा गरमाई हुई है।
वहां के लगभग सभी दल मन या बेमन से इस मुद्दे के साथ हैं।
राजद व जद (यू) समेत कुछ दल खुलकर मांग कर रहे हैं, जबकि भाजपा ने इसे मोदी सरकार पर छोड़ रखा है। भाजपा में भी नेता बंटे हुए हैं।
सांसद व पूर्व उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी व मौजूदा उप मुख्यमंत्री तार किशोर सिन्हा इसके समर्थन में हैं, जबकि विधान पार्षद संजय पासवान व हरिभूषण ठाकुर इसके विरोध में नजर आ रहे हैं।
दरअसल अभी कांग्रेस समेत कई अन्य दलों ने भी इस पर चुप्पी साध रखी हैं और वह केंद्र सरकार के रुख का इंतजार कर रहे हैं।
तृणमूल कांग्रेस ने भी कहा कि अगर सभी दल इस पर सहमति जताते हैं तो वह भी इसका समर्थन करेगी।
हालांकि जातिवार जनगणना से नया पिटारा खुलने की भी आंशका जताई जा रही है।
राज्यों में अभी विभिन्न जातियों की संख्या को लेकर जो अनुमान है वह गड़बड़ा सकता है। कर्नाटक में वोक्कालिगा को लेकर भी असमंजस है।
अभी अनुमान है कि उनकी संख्या 12 से 15 फीसदी होगी, लेकिन कुछ लोगों का कहना है कि यह आठ से दस फीसदी ही है।
सूत्रों के अनुसार भाजपा नेतृत्व मोटे तौर पर इसके खिलाफ नहीं है, लेकिन इसके भावी परिणामों को लेकर वह सतर्क जरूर है।
इस मुद्दे को गरमाने के पीछे के राजनीतिक उद्देश्य भी पहचाने जा रहे हैं।
सभी दलों से मांग उठने के बाद सरकार भी इस बारे में आगे बढ़ सकती है। केवल कुछ दलों की राजनीति को लेकर फैसला होने की उम्मीद नहीं है।