नई दिल्ली: दिल्ली की कड़कड़डूमा कोर्ट ने दिल्ली हिंसा मामले के आरोपित शरजील इमाम की जमानत याचिका पर सुनवाई टाल दिया है। एडिशनल सेशंस जज अमिताभ रावत ने 10 दिसंबर को अगली सुनवाई करने का आदेश दिया।
आज सुनवाई के दौरान दिल्ली पुलिस की ओर से स्पेशल पब्लिक प्रोसिक्युटर अमित प्रसाद ने दलीलें रखने के लिए दो-तीन दिन का समय मांगा जिसके बाद कोर्ट ने सुनवाई टाल दिया।
आज शरजील इमाम ने कोर्ट से कहा कि उनके वकील को वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये पेश होने की इजाजत दी जाए। कोर्ट ने उनकी इस मांग को मंजूर कर लिया।
शरजील इमाम ने कोर्ट से कहा कि उसे जेल से कोर्ट लाने के बाद लॉक-अप रुम में अलग रखा जाए। उसकी जान को खतरा है।
तब कोर्ट ने लॉक-अप रूम के इंचार्ज को बुलाकर पूछताछ की। लॉक-अप रूम के इंचार्ज ने कहा कि हाई-रिस्क वाले कैदियों को लॉक-अप रूम में अलग रखा जाता है लेकिन अगर ऐसा नहीं हो पाता है तो उन्हें कैदियों को कोर्ट लेकर आनेवाले वैन में ही रखा जाता है।
कोर्ट में 4 अक्टूबर को दोनों पक्षों की दलीलें पूरी हो गई थीं। सुनवाई के दौरान शरजील इमाम की ओर से वकील तनवीर अहमद मीर ने कि दिल्ली पुलिस कह रही है कि अस्सलाम-ओ-अलैकुम से भाषण शुरु होने का मतलब राजद्रोह था।
लेकिन क्या अगर आरोप गुड मार्निंग से भाषण शुरु करता तो आरोप खत्म हो जाते। मीर ने कहा था कि अभियोजन को अपनी मर्जी से कोई निष्कर्ष निकालने की आजादी नहीं होनी चाहिए।
हम किसी व्यक्ति पर मुकदमा केवल कानून के बदौलत नहीं बल्कि तथ्यों के आधार पर करते हैं। उन्होंने कहा था कि दो वर्ष बीतने को है लेकिन अभी ट्रायल शुरु भी नहीं हुआ है।
अगर कोई सरकार की नीतियों की आलोचना करता है तो उसके खिलाफ क्या कई सारे मुकदमे होने चाहिए। किसी नीति का विरोध करने के कई तरीके हो सकते हैं।
ये रोड पर प्रदर्शन के जरिये भी हो सकता है। प्रदर्शन के दौरान कोई विवाद नहीं हो सकता है। उन्होंने कहा था कि केवल संदेह के आधार पर आरोप नहीं लगाया जा सकता है।
दिल्ली पुलिस की ओर से स्पेशल पब्लिक प्रोसिक्युटर अमित प्रसाद ने कहा था कि आरोपित के पास कोई नया तथ्य नहीं है सिवाय ये कहने के कि उसे प्रदर्शन करने का किसी भी हद तक अधिकार है।
अगर सरकार आपकी बात नहीं सुन रही है तो आपको विरोध करने का अधिकार है। उनकी दलील है कि अगर आम आदमी भी प्रदर्शन से परेशान हो जाए तो भी उन्हें प्रदर्शन करने का अधिकार है।
अमित प्रसाद ने अमित साहनी के फैसले का उदाहरण दिया था। विरोध प्रदर्शनों के लिए आम रास्तों को रोका जाना कतई ठीक नहीं है और ऐसे में प्रशासन अपना काम जरूर करेगा और अतिक्रमण और बाधाओं को हटाएगा।
अमित प्रसाद ने कहा था कि दूसरा आरोप हमारी असलाम अलैकुम की दलील पर लगाया है। उन्होंने कहा कि शरजील इमाम के भाषणों को देखिए।
उन्होंने कहा था कि क्या आरोपी गुड मार्निंग इत्यादि शब्दों से भाषण शुरू करता तो उसके आरोप वापस हो जाते। उन्होंने कहा था कि शरजील इमाम का भाषण एक खास समुदाय को टारगेट करके दिया गया था।
कोर्ट ने 24 नवंबर 2020 को उमर खालिद, शरजील इमाम और फैजान खान के खिलाफ दायर पूरक चार्जशीट पर संज्ञान लिया था।
दिल्ली पुलिस की स्पेशल ने उमर खालिद, शरजील इमाम और फैजान खान के खिलाफ 22 नवंबर 2020 को पूरक चार्जशीट दाखिल किया गया था।
पूरक चार्जशीट में स्पेशल सेल ने यूएपीए की धारा 13, 16, 17, और 18 के अलावा भारतीय दंड संहिता की धारा 120बी, 109, 124ए, 147, 148, 149, 153ए, 186, 201, 212, 295, 302, 307, 341, 353, 395, 419, 420, 427, 435, 436, 452, 454, 468, 471 और 43 के अलावा आर्म्स एक्ट की धारा 25 और 27 और प्रिवेंशन आफ डेमेज टू पब्लिक प्रोपर्टी एक्ट की धारा 3 और 4 के तहत आरोप लगाए गए हैं।
चार्जशीट में कहा गया है कि शरजील इमाम ने केंद्र सरकार के खिलाफ घृणा फैलाने और हिंसा भड़काने के लिए भाषण दिया जिसकी वजह से दिसंबर 2019 में हिंसा हुई।
दिल्ली पुलिस ने कहा है कि नागरिकता संशोधन कानून के विरोध की आड़ में गहरी साजिश रची गई थी। इस कानून के खिलाफ मुस्लिम बहुल इलाकों में प्रचार किया गया।
यह प्रचार किया गया कि मुस्लिमों की नागरिकता चली जाएगी और उन्हें डिटेंशन कैंप में रखा जाएगा। बता दें कि शरजील को बिहार से गिरफ्तार किया गया था।