नई दिल्ली: 1971 की लड़ाई में भारत ने न केवल पाकिस्तान को निर्णायक तौर पर परास्त किया था बल्कि इसके साथ ही 93 हजार पाकिस्तानी सैनिकों को बंदी बना कर दुनियाभर को एक संदेश भी दे दिया था।
दुनिया के सैन्य इतिहास में ऐसा कभी नहीं हुआ था। इस शानदार जीत के 50 साल पूरे होने पर आईएएनएस ने 1971 की लड़ाई में शामिल रहे ,
आगे चलकर भारतीय सेना के सेनाध्यक्ष बने और वर्तमान में केंद्र सरकार में मंत्री पद का दायित्व संभाल रहे जनरल वीके सिंह के साथ खास बातचीत की।
सवाल – 1971 में भारत-पाकिस्तान के बीच यह लड़ाई कैसे शुरू हुई थी ?
जवाब – उस समय मेरी लगभग डेढ़ वर्ष की सर्विस थी। पाकिस्तान के साथ हमारी लड़ाई औपचारिक रूप से दिसंबर में शुरू हुई थी लेकिन इसके कई महीने पहले अप्रैल से ही सीमा पर काफी कुछ चल रहा था।
ईस्ट पाकिस्तान ( वर्तमान में बांग्लादेश ) की तरफ जो पाकिस्तानी सैनिक तैनात थे वो हमारी तरफ फायरिंग करते रहते थे। सीमा उस पार से काफी शरणार्थी भारत में आ रहे थे।
इसके अलावा भी उस समय सीमा पर काफी कुछ चल रहा था और इसी तरह के हालात दिसंबर तक बने रहे। 3 दिसंबर को लड़ाई की औपचारिक घोषणा हुई और उसके बाद भारत की बहादुर सेना ने जो किया वो पूरी दुनिया के सैन्य इतिहास में कभी नहीं हुआ।
ये मैं इसलिए कह रहा हूं कि एक ऐसे इलाके में जहां नदियां और नाले थे, जहां चलने और गाड़ियों के जाने में मुश्किल था। वहां पैदल लड़ाई लड़ कर महज 13 दिनों में दुश्मन को परास्त कर , उसका सरेंडर करवा लेना एक बड़ी बात थी।
दुश्मन के 93 हजार सैनिकों को बंदी बना लेना अपने आप में बड़ी जीत थी। इसके बारे में जितनी खोज की जाए, जितना लिखा जाए उतना ही बढ़िया है क्योंकि इससे देश को पता चलेगा कि उस समय देश के सैनिकों ने , देश की सेनाओं ने और सेना के कमांडरों ने क्या काम किया था।
सवाल – आपने बिल्कुल सही कहा कि दुनिया के सैन्य इतिहास में शायद ही कोई और लड़ाई हुई होगी जिसका इतना बड़ा निर्णायक नतीजा केवल 13 दिनों में ही हो गया। उस समय आपके वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों की क्या रणनीति थी ?
जवाब – 1971 की लड़ाई की पूरी रणनीति फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ जी ने बनाई थी। पूर्वी कमान के जनरल जैकब ने बहुत काम किया और लड़ाई जीतने की रणनीति को पूरी तरह से फॉलो किया।
हम लोग जिस कोर के नीचे थे , उनके जनरल सगत सिंह ने ढाका के सरेंडर में निर्णायक भूमिका निभाई। अगर वो निर्णायक तरीके से आगे बढ़ते हुए मेघना नदी को पार नहीं करते तो शायद पाकिस्तानी सेना की हालत इतनी खराब नहीं होती और न ही ढ़ाका का मोर्चा इतनी जल्दी गिर पाता। इसके अलावा भी लड़ाई में कई अन्य अहम मोचरें पर महत्वपूर्ण जीत हासिल हुई थी।
चाहे वो हेली की शुरू की लड़ाई हो , मेघना नदी को पार करने की बात हो, मधुमती नदी को पार करने की बात हो , किस अदम्य साहस के साथ हमारी सेना लड़ी और जीती , यह इतिहास में दर्ज हो गया है।
मैनावती की लड़ाई में एक खास रणनीति बनाकर जिस तरह से पाकिस्तानी फौज को चकमा दिया गया, उनको झूकना पड़ा। रणनीति और साहस के तौर पर यह शानदार लड़ाई थी और इसके नतीजों को पूरी दुनिया ने देखा।
सवाल – आपने कहा कि औपचारिक तौर पर लड़ाई की घोषणा 3 दिसंबर , 1971 को हुई थी लेकिन अप्रैल के महीने से ही सीमा पर बहुत कुछ होने लगा था। इन महीनों के दौरान युद्ध को लेकर भारतीय सेना किस तरह से तैयारी कर रही थी ?
जवाब – उस समय तक हमें यह नहीं पता था कि लड़ाई होगी ही लेकिन फिर भी हमारी रणनीति साफ थी कि अपने आप को किस तरह से मजबूत किया जाए और किस तरह से तैयारी की जाए।
हम अपनी तैयारी में लगे हुए थे और कई मोचरें पर एक साथ तैयारी कर रहे थे। हमारे बंगाली भाई जो मुक्तिवाहिनी में थे उन्होने भी संघर्ष के दौरान बहुत काम किया।
सवाल – 1971 की लड़ाई में मिली ऐतिहासिक जीत के बाद अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत और भारतीय सेना का इकबाल कैसे बुलंद हुआ ?
जवाब – 1971 में अप्रैल के महीने से ही हमने अपने आपको मजबूत करना शुरू कर दिया था। लड़ाई की पूरी रणनीति फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ जी ने बनाई थी।
मोर्चे पर हमारे बहादुर जवानों और कमांडरों ने शानदार बहादुरी दिखाई और हमने 93 हजार पाकिस्तानी सैनिकों को सरेंडर करने पर मजबूर कर दिया।
उस समय की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने जिस तरह से राजनीतिक तौर पर एक रणनीति तैयार की थी , उसके लिए इंदिरा गांधी जी को भी दाद देनी चाहिए क्योंकि उन्होने उस समय वो सब कुछ किया जो एक अच्छे रणनीतिकार को करना चाहिए था।