New Delhi News: जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले, जिसमें 26 लोग मारे गए, पर 24 अप्रैल को बुलाई गई सर्वदलीय बैठक में विपक्ष ने केंद्र की भाजपा सरकार को पूर्ण समर्थन देने का ऐलान किया। यह समर्थन 2019 के पुलवामा हमले के बाद दी गई एकजुटता की तरह है। हालांकि, विपक्ष ने सुरक्षा व्यवस्था में चूक को लेकर तीखे सवाल उठाए, और सरकार ने भी स्वीकार किया कि चूक हुई।
विपक्ष ने जवाबदेही तय करने और आतंकी कैंपों को नष्ट करने की मांग की, साथ ही पाकिस्तान पर हवाई-नौसैनिक नाकाबंदी और हथियार बिक्री पर प्रतिबंध जैसे कदमों का सुझाव दिया।
आतंकवाद के खिलाफ विपक्षी नेताओं की एकजुटता
सर्वदलीय बैठक में विपक्षी नेताओं ने आतंकवाद के खिलाफ एक स्वर में सरकार का समर्थन किया। लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने कहा, “सभी ने पहलगाम आतंकी हमले की निंदा की। विपक्ष ने सरकार को कोई भी कार्रवाई करने के लिए पूरा समर्थन दिया है।” राहुल 25 अप्रैल को श्रीनगर और अनंतनाग जाकर स्थिति का जायजा लेंगे।
केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने बताया कि सभी दलों ने कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी (CCS) के पाकिस्तान के खिलाफ निर्णयों—जैसे सिंधु जल संधि निलंबन, अटारी-वाघा बॉर्डर बंद, और वीजा रद्द—का सर्वसम्मति से समर्थन किया।
AIMIM नेता असदुद्दीन ओवैसी ने कहा, “केंद्र सरकार जो भी फैसला लेगी, हम उसका समर्थन करेंगे। यह राजनीतिक मुद्दा नहीं है।” हालांकि, उन्होंने सिंधु जल संधि निलंबन पर सवाल उठाया, “पानी कहां रखेंगे?” टीएमसी सांसद सुदीप बंद्योपाध्याय ने कहा, “देश के हित में सरकार जो भी कदम उठाएगी, सभी दल साथ हैं।”
सुरक्षा चूक पर तीखे सवाल
बैठक में विपक्ष ने सुरक्षा चूक पर तीखे सवाल उठाए। राहुल गांधी ने पूछा, “बायसरन मीडो में सुरक्षाकर्मी क्यों नहीं थे?” ओवैसी ने सवाल किया, “CRPF की तैनाती क्यों नहीं थी? क्विक रिस्पांस टीम को पहुंचने में एक घंटा क्यों लगा?” AAP सांसद संजय सिंह ने पूछा, “20 अप्रैल को बिना सुरक्षा एजेंसियों की जानकारी के पर्यटक स्थल क्यों खोला गया?”
सरकार ने स्वीकार किया कि चूक हुई। एक वरिष्ठ नेता ने कहा, “अगर सब ठीक होता, तो हम यहां क्यों बैठे होते? कहीं न कहीं चूक हुई है।
” सरकार ने बताया कि स्थानीय टूर ऑपरेटर्स ने प्रशासन को सूचित किए बिना 20 अप्रैल से बायसरन मीडो के लिए बुकिंग शुरू कर दी, जिसके चलते वहां सुरक्षा बल तैनात नहीं थे।
यह खुलासा हैरान करने वाला है, क्योंकि जम्मू-कश्मीर जैसे संवेदनशील क्षेत्र में खुफिया चेतावनियों के बावजूद प्रशासन को पर्यटकों की आवाजाही की जानकारी नहीं थी।