नई दिल्ली: कोरोना महामारी के कारण उत्पन्न बेरोजगारी और बढ़ती लागत कीमतों के कारण जोरदार मंहगाई का सामना कर रहे लोगों को एक फरवरी को संसद में पेश किए जाने वाले वित्त वर्ष 2022-23 के आम बजट में सरकार से राहत मिलने की उम्मीद है।
एसएमसी ग्लोबल सिक्योरिटीज की एक रिपोर्ट में कहा गया कि सरकार मानक कटौती की सीमा 50 हजार रुपए से बढ़ाकर एक लाख रुपए कर सकती है।
इसमें आवास ऋण पर ब्याज और मूल धन के पुनर्भुगतान पर प्रत्येक में 50-50 हजार रुपए की आयकर लाभ बढ़ोत्तरी की उम्मीद है।
मौजूदा समय में इनका स्तर दो लाख और डेढ़ लाख रुपए है। सरकार तीन वर्षों के लिए आवास ऋण पर तीन से चार प्रतिशत की ब्याज सब्सिडी भी प्रदान कर सकती है।
सरकार रेलवे को नया रूप देने के लिए पूरी तरह से प्रतिबद्व है और माना जा रहा है कि अगले वित्त वर्ष में रेलवे के लिए बजट आबंटन में रिकार्ड बढ़ोत्तरी की जा सकती है।
इसके अलावा पेट्रोलियम उत्पादों में भी कमी किए जाने की उम्मीद है। आवास, आटोमोबाइल और सहायक क्षेत्रों को भी सरकार से कुछ राहत मिलने की उम्मीद है।
सरकार राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन (एनएमपी) के तहत सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (पीएसयू) के परिसंपत्ति मुद्रीकरण की घोषणा कर सकती है।
यह फ्लोटिंग आरईआईटी द्वारा अपने स्वामित्व वाले आवास और वाणिज्यिक अचल संपत्ति का मौद्रिकरण भी कर सकता है।
बजट के साथ विनिवेश योजना के स्पष्ट होने की संभावना है। सरकार अपनी विनिवेश योजना के जरिए इस अंतर को कम करने की कोशिश कर रही है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकार अब तक पीएसयू में अपनी हिस्सेदारी बेचकर 9,330 करोड़ रुपये जुटा पाई है।
एलआईसी आईपीओ, जिसके मार्च के अंत में बाजार में आने की उम्मीद है,वह एक लाख करोड़ रुपये से अधिक जुटाकर सरकार की बड़ी मदद कर सकता है।
सरकार का कुल विनिवेश लक्ष्य मौजूदा वित्त वर्ष के लिए 1.75 लाख करोड़ रुपये है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि एलआईसी आईपीओ के अलावा विनिवेश के लंबित बड़े क्षेत्रों में आईडीबीआई बैंक, भारत पेट्रोलियम कॉपोर्रेशन, पवन हंस, शिपिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया, बीईएमएल और कंटेनर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया शामिल हैं।
उम्मीद है कि यह बजट रेंटल हाउसिंग मार्केट और सस्ते आवासीय सेक्टर दोनों को प्रोत्साहन देगा।
इस क्षेत्र को आगामी बजट से बड़ी उम्मीदें हैं जैसे इसे उद्योग का दर्जा दिए जाने की मांग और वित्त की आसान उपलब्धता। सिंगल-विंडो क्लीयरेंस मैकेनिज्म की मांग कई सालों से बनी हुई है।
विश्व स्तर पर उर्वरकों की कीमतों में उल्लेखनीय वृद्धि होने से भारत पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है क्योंकि इनका बाहर से आयात होता है।
सबसे अधिक इस्तेमाल किए जाने वाले यूरिया की कीमतें डेढ़ साल पहले की तुलना में तीन गुना बढ़कर 990 डॉलर प्रति टन हो गई है जबकि डीएपी की कीमत दोगुनी होकर 700-800 डॉलर प्रति टन हो चुकी है।
इसके अलावा यूरिया उत्पादन की 80 प्रतिशत लागत के लिए जिम्मेदार प्राकृतिक गैस की कीमतों में हाल ही में हुई बढ़ोत्तरी से यूरिया उत्पादन लागत में वृद्धि जारी रहने की उम्मीद है।
देश के विभिन्न राज्यों में इस समय किसान उर्वरकों की कमी का सामना कर रहे हैं और उर्वरक की पर्याप्त आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए कृषि विभाग को केंद्र से तत्काल हस्तक्षेप की गुहार लगानी पड़ी है।
ग्रामीण भारत को बुरी तरह प्रभावित करने वाली कोरोना महामारी के कारण किसान पहले से ही संकट में हैं, और अधिक कीमतें तथा उर्वरक की कमी उनकी वित्तीय स्थिति पर और प्रतिकूल असर डालेगी।
इस प्रकार सरकार से कृषि अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के माध्यम से किसानों की आय में सुधार करने की दिशा में ध्यान केंद्रित करने की उम्मीद है।
इससे कृषि क्षेत्र में बीज, उर्वरक, फसल सुरक्षा, रसायन और ट्रैक्टर आदि पर आने वाली लागत का फायदा पूरे कृषि क्षेत्र को मिलने की उम्मीद हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले कुछ बजटों में, सरकार ने उर्वरक सब्सिडी के लिए बजटीय आवंटन बढ़ा दिया है और आगामी बजट में 1.3 लाख करोड़ रुपए की उर्वरक सब्सिडी की उम्मीद की जा रही है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि इसके अलावा सरकार पहले अपनाई गई समान नीति को जारी रखते हुए कृषि ऋण को मौजूदा वर्ष के लिए 16.5 लाख करोड़ रुपये से बढ़ाकर 18 लाख करोड़ रुपये कर सकती है। यह कदम किसानों को महामारी से उबरने मे मदद दे सकता है।
केन्द्र सरकार ने महामारी प्रभावित एमएसएमई क्षेत्र को वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिए मार्च 2020 में आपातकालीन क्रेडिट लिंक्ड गारंटी योजना पेश की थी।
बाद में इसका दायरा वित्तीय संकट का सामना कर रहे अन्य उद्योगों तक बढ़ाते हुए साख सीमा को 3 लाख करोड़ रुपये से बढ़ाकर 4.5 लाख करोड़ रुपये कर दिया गया था।
यह योजना मार्च 2022 तक बढ़ा दी गई है। इस क्षेत्र को अभी भी बहुत संकट का सामना करना पड़ रहा है और कई पात्र एमएसएमई पुनर्गठन के विभिन्न चरणों में हैं।
एसएमसी ग्लोबल सिक्योरिटीज को उम्मीद है कि सरकार इस योजना को मार्च 2023 तक या अर्थव्यवस्था के फिर से मजबूत होने तक बढ़ाएगी जिससे बैंकों को तरलता सहायता जारी रखने में मदद मिलेगी।