नई दिल्ली: दिल्ली हाई कोर्ट ने एयर इंडिया की विनिवेश प्रक्रिया को रद्द करने को लेकर दायर सुब्रमण्यम स्वामी की याचिका खारिज कर दी है।
चीफ जस्टिस डीएन पटेल की अध्यक्षता वाली बेंच ने ये आदेश दिया।
कोर्ट ने 4 नवंबर को फैसला सुरक्षित रख लिया था। सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने याचिका का विरोध करते हुए कहा था कि ये केंद्र सरकार का नीतिगत मसला है।
उन्होंने कहा था कि एयर इंडिया का सौ फीसदी विनिवेश कर दिया गया है, जिसे टाटा समूह ने 18 सौ करोड़ रुपये में खरीदा है।
हालांकि अभी टाटा को सुपुर्द किये जाने की प्रक्रिया जारी है। मेहता ने कहा कि 2017 में विनिवेश को लेकर फैसला लिया जा चुका था।
एयर इंडिया काफी नुकसान में है और उस पर काफी कर्ज है।स्वामी की ओर से वकील सत्या सभरवाल ने याचिका में कहा था कि एयर इंडिया के विनिवेश की पूरी प्रक्रिया की सीबीआई जांच का दिशानिर्देश जारी किया जाए।
गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने एयर इंडिया को टाटा के साथ में देने की घोषणा की है। टाटा समूह ने एयर इंडिया को 18 हजार करोड़ रुपये में निविदा प्रक्रिया के जरिए हासिल किया है।
स्वामी ने कहा था कि विनिवेश प्रक्रिया पूरे तरीके से मनमानी है और वो जनहित में नहीं है। टाटा समूह को एयर इंडिया देने के लिए पूरी विनिवेश प्रक्रिया में गड़बड़ी की गई है। एयर इंडिया की कीमत कम आंकी गई।
टाटा समूह की ओर से वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने कहा था कि निविदा प्रक्रिया बंद हो चुकी है। शेयरों की खरीद के समझौते पर हस्ताक्षर हो चुके हैं।
ये सब कुछ सार्वजनिक है। 31 मार्च तक हस्तांतरण की पूरी प्रक्रिया पूरी होने की उम्मीद है। अब इस याचिका को दायर करने का कोई मतलब नहीं है।
साल्वे ने कहा था कि एयरलाइंस का व्यवसाय काफी प्रतिस्पर्धी है। यहां तक कि टाटा समूह भी इसे लेकर नर्वस है कि वो इतनी रकम दे पाएगा कि नहीं।
साल्वे ने कहा था कि याचिकाकर्ता ने ऐसा कोई तथ्य नहीं पेश किया है, जिससे पता चले कि भ्रष्टाचार हुआ है।
गौरतलब है कि एयर इंडिया पहले टाटा के पास थी, जिसे बाद में केंद्र सरकार ने अधिग्रहीत कर लिया था।
केंद्र सरकार ने टाटा की ओर से एयर इंडिया की निविदा सफलता पूर्वक हासिल करने के बाद कहा था कि किसी भी कर्मचारी को एक साल तक नौकरी से निकाला नहीं जाएगा।
अगर टाटा समूह को कर्मचारियों की छंटनी की जरूरत पड़ेगी तो उसे वीआरएस का विकल्प देना होगा।