नई दिल्ली/रांची: रेंगुनी बस्ती में जय धरती मां फाउंडेशन की ओर से रेंगुनी बस्ती में लगभग दस एकड़ जमीन पर पपीते की खेती की जा रही है।
आसपास के युवाओं ने आठ माह पहले पपीते की खेती शुरू की। छोटे पौधे अब पेड़ बन चुके हैं। एक माह में 10 टन से अधिक पपीता की बिक्री इस बगान से हो चुकी है।
धनबाद में अधिकतर पपीता आंध्र प्रदेश, केरल और बंगाल से आता है, लेकिन रेंगुनी में पपीता तैयार होने के बाद अब शहर में जितने भी पपीते बिक रहे हैं, सभी लोकल हैं।
लोग इसे अधिक पसंद कर रहे हैं। यही वजह है कि शहर में फलों के व्यापारी भी इसी पपीते को खरीद कर ले जा रहे हैं।
जैविक तरीके से होती है पपीते की खेती
फाउंडेशन से जुड़े रवि कुमार, रूपेश महतो, बुधन हेम्ब्रम और संजय सिंह ने बताया कि यहां पपीता की खेती जैविक तरीके से होती है।
इसमें गोबर और पत्ते से तैयार खाद का प्रयोग किया जाता है। इसका स्वाद भी हाइब्रिड पपीते से अलग होता है।
दूसरे राज्यों के पपीता से सस्ता
बाहर से आने वाला पपीता 30-35 रुपए किलो मिलता है, लेकिन रेंगुनी बस्ती में तैयार पपीते सिर्फ 25 रुपए किलो ही मिल रहे हैं। व्यापारियों को कम रेट मिलने पर सभी यहीं से खरीद कर ले जा रहे हैं।
युवाओं ने मिलकर अपने गांव के पास ही खेती से रोजगार तैयार कर लिया है।