नई दिल्ली: कोरोना वायरस के नए वैरिएंट ने भी भारत में दस्तक दे दी है।
इसको लेकर भारतीय वैज्ञानिकों ने कहा कि भारत की वैक्सीनें लोगों को ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका के कोविड स्ट्रेन से बचा पाएंगी या नहीं, इसे लेकर जल्द ही परीक्षण होगा।
भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने मंगलवार को घोषणा की थी कि पुणे स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी (एनआईवी) अपनी प्रयोगशाला में दक्षिण अफ्रीकी वैरिएंट को आइसोलेट करके संक्रमण के प्रसार और उसकी वृद्धि की स्टडी करने की प्रक्रिया में है।
आईसीएमआर के महामारी विज्ञान और संचारी रोग विभाग के चीफ डॉ. समीरन पांडा ने कहा कि सीरम इंस्टिट्यूट के पास जो नमूने हैं, वे उन लोगों से लिए गए हैं, जिन्हें भारत में कोराना की वैक्सीन लगी है।
इन नमूनों का लैब में परीक्षण करके ये देखा जाएगा कि क्या ये भारत में हाल ही में आए कोविड के दो नए स्ट्रेन को बेअसर कर सकते हैं या नहीं।
डॉ. पांडा ने आगे कहा, ‘यह जरूरी नहीं है कि एक वैरिएंट जो अधिक संक्रमणीय (ट्रांसमिसिबल) है, वह अधिक वायरल भी होगा।
दूसरी बात यह भी देखना होगा कि क्या वे तेजी से फैलने वाले वायरस से जुड़े हैं।’ दरअसल, साउथ अफ्रीकी वैरिएंट को 501.वी 2 के नाम से जाना जाता है।
वहीं, ब्राजील के नए वायरस को पी.1 नाम से जाना जाता है। भारत में अब तक दक्षिण अफ्रीकी वायरस के चार जबकि ब्राजील के नए स्ट्रेन का एक मामला सामने आया है।
वहीं, नेशनल सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल के डायरेक्टर डॉ. सुजीत कुमार सिंह ने कहा कि ब्राजील के वैरिएंट को अधिक संक्रमणीय माना जाता है और इसमें एंटीबॉडी से बचने की क्षमता हो सकती है।
उन्होंने आगे कहा कि अध्ययनों से पता चलता है कि दक्षिण अफ्रीकी वैरिएंट भी अधिक संक्रामक है।’
यहां बता दें कि नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी पहले ही परीक्षण के लिए ब्राजील वाले वैरिएंट के कल्चर प्रक्रिया को पार कर चुका है।
यहां बताना जरूरी है कि कल्चरिंग उस प्रक्रिया को कहा जाता है, जब लैब में किसी वायरस या वैक्टिरिया के वृद्धि के लिए उपयुक्त परिस्थितियों का निर्माण किया जाता है।