नई दिल्ली: जिस तेजी से टीकाकरण के जरिए कोरोना वायरस को बेअसर करने की कोशिश हो रही है, उससे कहीं ज्यादा तीव्रता से यह वायरस अपना स्वरूप बदल रहा है। इसके नित नए-नए स्वरूप सामने आ रहे हैं।
अमेरिका में हुए शोध में जब टीका लगाने के बाद संक्रमित हुए लोगों में मिले वायरस की जीनोम सिक्वेंसिंग की गई तो पाया गया है कि संक्रमण के लिए नया वेरिएंट जिम्मेदार है, जो ब्रिटेन एवं न्यूयॉर्क वेरिएंट के मिलने से बना है।
यह शोध न्यू इग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन में प्रकाशित हुआ है।
न्यूयॉर्क स्थित राकफेलर यूनिवसिर्टी के वैज्ञानिकों ने फाइजर एवं मार्डना का टीका लगा चुके 417 लोगों पर यह शोध किया।
इनमें से एक महिला को टीके की दूसरी डोज लेने के 19 दिन बाद और दूसरी महिला को 36 दिनों के बाद कोरोना संक्रमण हुआ। शोधकर्ताओं ने इन मरीजों में दो जांच की।
एक में यह देखा गया कि क्या उनके शरीर में कोरोना वायरस के संक्रमण से लड़ने के लिए न्यूट्रीलाइजिंग एंटीबाडीज मौजूद हैं या नहीं।
दोनों में पर्याप्त मात्रा में न्यूट्रीलाइजिंग एंटीबाडीज पाई गई। मतलब टीका सही काम कर रहा है।
साथ ही यह भी पाया गया कि ये एंटीबाडीज अमेरिका में बहुतायत से संक्रमण के लिए जिम्मेदार यूके वेरिएंट एवं न्यूयॉर्क वेरिएंट के खिलाफ लड़ने में कारगर हैं।
शोधकर्ताओं का कहना है कि न्यूट्रीलाइजिंग एंटीबाडीज यूके एवं न्यूयॉर्क वेरिएंट के संक्रमण को पहचान रही हैं, जिसका मतलब है कि उन दोनों वेरिएंट पर वे कारगर हैं।
लेकिन दोनों महिलाओं में संक्रमण के लिए नए वेरिएंट जिम्मेदार हैं। इन म्यूटेशन में वायरस के एस जीन में भी अहम बदलाव पाए गए हैं जो टीके से बनी एंटीबाडीज के बावजूद संक्रमण की वजह हो सकती है।
शोधकर्ताओं ने कहा कि दोबारा संक्रमण के बावजूद दोनों महिलाओं में जो अच्छी बात देखी गई है, वह यह है कि उन्हें संक्रमण हल्का हुआ है। जबकि एक महिला 65 वर्ष की है।
वैज्ञानिकों का दावा है कि टीके के ब्रेकथ्रो संक्रमण नहीं रोक पाने के बावजूद उसके असर में कमी सकारात्मक है।
शोधकर्ताओं ने कहा कि जिस तेजी से टीकाकरण के जरिये वायरस पर काबू पाने की कोशिश हो रही है, उससे भी कहीं तेज गति से वायरस अपना स्वरूप बदलकर इसे बच निकलने की कोशिश कर रहा है।
इसलिए अभी भी एक ऐसे टीके पर काम करने की जरूरत है जो पूरी तरह से इस वायरस के खिलाफ काम करे।