रांची: राज्यपाल रमेश बैस ने कहा कि मानव जीवन में क्रांति लाने का श्रेय विज्ञान को है। आज हर जगह, हर पल विज्ञान का प्रभाव सर्वत्र देखा जा सकता है।
विज्ञान ने हर पग पर मानव जीवन को इतनी सुविधाएं प्रदान की हैं। वह मनुष्य के लिए कामधेनु बन गया है।
राज्यपाल मंगलवार को बिरला प्रौद्योगिकी संस्थान (बीआईटी) मेसरा रांची द्वारा आयोजित विज्ञान प्रौद्योगिकी महोत्सव ‘विज्ञान सर्वत्र पूज्यन्ते’ के अवसर पर वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से बोल रहे थे।
राज्यपाल ने कहा कि विज्ञान ने धरती, आकाश और जल, तीनों को प्रभावित किया है। धरती का तो शायद ही कोई कोई कोना हो, जहां विज्ञान ने कदम न रखा हो।
विज्ञान के कारण आज मनुष्य की उन्नति और प्रगति का कोई सीमा नहीं है। सबसे पहले कृषि क्षेत्र में आई क्रांति का मुख्य कारण विज्ञान ही है।
विज्ञान की वजह से ट्रैक्टर, ट्यूबवेल, कीटनाशक, खरपतवार नाशक यंत्र और दवाएं हैं । इसके अलावा उन्नत बीज, खाद और यंत्रों का आविष्कार विज्ञान के कारण ही संभव हो पाया है।
आज मैं आप सभी से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से जुड़कर संबोधित कर रहा हूं। ये साइंस एवं टेक्नोलॉजी की ही तो देन है।
हरकारों और कबूतरों से संदेश भेजने वाला मनुष्य चिट्टियों और पोस्ट कार्ड की दुनिया से निकलकर टेलीफ़ोन, ई-मेल से होते हुए मोबाइल तक आ पहुंचा है।
उन्होंने कहा कि चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में विज्ञान ने मनुष्य को नया जीवन दिया है। अब रोगों का इलाज ही नहीं, शरीर के अंगों को बदला भी जा रहा है।
रक्तदान और नेत्रदान जैसे मानव हित के कार्यों और विज्ञान के सहयोग से मनुष्य को नवजीवन मिल रहा है।
हमारे वैज्ञानिक चांद पर जा रहे हैं, मंगल पर जीवन की तलाश कर रहे हैं। हमारे वैज्ञानिक निरंतर उपग्रह छोड़ने में सफलता प्राप्त कर रहे हैं। हमारा देश परमाणु शक्ति सम्पन्न देश है।
उन्होंने कहा कि बीआईटी, मेसरा, बीआईटी, सिंदरी, निफ़्ट और आईएसएम, धनबाद जैसे तकनीकी संस्थानों ने इनोवेशन और इमेजिनेशन के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
उन्होंने कहा कि हमारा लक्ष्य युवा मस्तिष्क को प्रेरित करना और एक प्रगतिशील राष्ट्र के निर्माण में सामुदायिक भागीदारी को बढ़ाना है।
हम भारतीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी की दुनिया से 75 प्रमुख योगदानों को भी प्रदर्शित कर रहे हैं जो आधुनिक विज्ञान और प्रौद्योगिकी प्रणाली में मील का पत्थर साबित हुए हैं।
इसके अलावा हम पारंपरिक ज्ञान प्रणाली के कोश को चिन्हित कर अपना रहे हैं, जिसने ‘स्वदेशी पारंपरिक आविष्कारों और इनोवेशन’ की अवधारणा के तहत भारत को पुनर्स्थापित किया है।