,: बिहार में लगातार तीन विधानसभा चुनावों में बेहतर प्रदर्शन करने के बाद जनता दल यूनाइटेड का प्रदर्शन मौजूदा चुनाव में बेहद निराशाजनक रहा है।
जदयू को विधानसभा चुनाव में केवल 43 सीटों पर संतोष करना पड़ा। नतीजा यह रहा कि नीतीश कुमार की पार्टी बिहार विधानसभा में तीसरे नंबर की पार्टी बन गई। यही वजह है कि नीतीश ने जदयू के खोये जनाधार वापस को पाने के लिए अपने नए ब्लूप्रिंट पर काम शुरू कर दिया है।
नीतीश कुमार ने पहले उपेन्द्र कुशवाहा, उसके बाद नरेंद्र सिंह और अब अपने पुराने साथी अरुण कुमार से बातकर सभी पुराने साथियों को जोड़ने की मुहिम शुरू कर दी है। ये वे साथी हैं, जो वर्ष 2005 में उनके साथ हुआ करते थे।
पिछले दिनों मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और रालोसपा सुप्रीमो उपेंद्र कुशवाहा के बीच मुलाकात हुई थी। इस मुलाकात के बाद लगातार राजनीतिक गलियारे में यह चर्चा तेज रही थी कि कुशवाहा की रालोसपा का विलय जदयू में करने का प्रस्ताव दिया गया है। हालांकि कुशवाहा ने इसे बाद में खारिज कर दिया।
बावजूद इसके उपेंद्र कुशवाहा यह बताने से नहीं चूके कि नीतीश कुमार के साथ उन्होंने अपनी राजनीति की शुरुआत की है।
विधानसभा चुनाव के बाद कुशवाहा का तेवर नीतीश को लेकर नरम पड़ा है और अब चर्चा यह है कि नीतीश कुमार कुशवाहा के साथ जदयू से अलग होकर नई पार्टी बनाने वाले पूर्व सांसद अरुण कुमार से भी नजदीकियां बढ़ा रहे हैं। सूत्र बताते हैं कि पिछले दिनों नीतीश कुमार ने अरुण कुमार से फोन पर बातचीत की है।
कभी नीतीश कुमार के करीबी रहे अरुण कुमार अब उनके विरोध में खड़े हैं। अरुण कुमार ने भारतीय सबलोग पार्टी बनाकर विधानसभा चुनाव लड़ा था लेकिन उन्हें कोई कामयाबी नहीं मिली।
अब उनके सामने भी भविष्य की राजनीति बचाए रखने की चुनौती है और नीतीश कुमार इसी चुनौती को देखते हुए अरुण कुमार को अपने साथ लाने की कोशिश कर सकते हैं।
अरुण कुमार ने कहा कि वह नीतीश कुमार के साथ वर्ष 2005 में आए थे। तब बिहार की तस्वीर बदलने की कोशिश हुई थी लेकिन बाद के दौर में नीतीश कुमार की प्राथमिकताएं बदल गई।
आज नीतीश कुमार जिन बिंदुओं पर समझौता कर रहे हैं, उन बिंदुओं से अलग हुए बगैर उनके साथ जाना मुश्किल है। सूत्र बता रहे हैं कि दोनों नेताओं के बीच फोन पर बातचीत हो चुकी है।
अगर माहौल ठीक रहा तो जल्द ही इनकी मुलाकात भी होगी। नरेंद्र सिंह विधानसभा चुनाव तक नीतीश कुमार के खिलाफ जहर उगल रहे थे।
लगातार उनकी आलोचना कर रहे थे लेकिन नीतीश ने धीरे-धीरे उन्हें अपने पाले में करने की कवायद शुरू कर दी।
नरेंद्र सिंह के बेटे सुमित सिंह निर्दलीय चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे हैं और विधानसभा के अंदर मौजूदा अंकगणित में सुमित सिंह को अपने साथ बनाए रखना नीतीश कुमार के लिए तुरुप का इक्का साबित हो सकता है।
दरअसल, नीतीश कुमार अपनी पार्टी की बुरी स्थिति के लिए कहीं न कहीं दूसरे कतार के सामाजिक समीकरण वाले मजबूत नेताओं की कमी को बड़ी वजह मानते हैं।