नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) ने कोरोना वैक्सीन (Corona Vaccine) से जुड़े एक मामले में बड़ा फैसला सुनाया है।
कोर्ट का साफ का कहना है कि COVID-19 टीकाकरण (COVID-19 Vaccination) को लेकर कोई भी संस्थान अपने कर्मचारी पर दवाब नहीं बना सकता है।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने कर्मचारियों को COVID-19 वैक्सीन के लिए मजबूर करने से संबंधित सभी लंबित आवेदनों का निस्तारण करते हुए निर्देश दिया कि नियोक्ता वैक्सीनेशन पर जोर नहीं दे सकता।
पीठ ने दिया निर्देश
न्यायमूर्ति प्रतिभा M सिंह की एकल न्यायाधीश की पीठ (Single Judge Bench) ने सरकारी स्कूल के शिक्षक की उस याचिका पर सुनवाई की जिसमें वैक्सीन लेने के लिए मजबूर किए बिना पढ़ाने और अन्य जिम्मेदारियों को निभाने की अनुमति मांगी गई थी।
पीठ ने याचिकाकर्ता (Petitioner) को सेवा लाभ के लिए संबंधित प्राधिकरण को एक प्रतिनिधित्व करने की अनुमति देते हुए राहत दी और निर्देश दिया कि इस पर निर्णय 30 दिनों के भीतर लिया जाए।
इससे पहले जैकब पुलियेल बनाम भारत संघ (Jacob Puliel v. Union of India) और अन्य मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने एक फैसला सुनाया था कि यह एक व्यक्ति का अधिकार है कि वह किसी भी चिकित्सा उपचार (Medical Treatment) को लेने से इंकार कर दे जब तक कि उसके स्वयं के स्वास्थ्य का संबंध है।
किसी भी कंपनी को टीकाकरण अनिवार्य करने की आवश्यकता नहीं: सुप्रीम कोर्ट
नरेंद्र कुमार बनाम राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार में एक समन्वय पीठ द्वारा पारित एक अन्य आदेश में सरकार ने भी Supreme Court के फैसले के अनुसार प्रस्तुत किया था कि किसी भी कंपनी को टीकाकरण अनिवार्य करने की आवश्यकता नहीं है और सभी कर्मचारियों को आवश्यकता के बिना अपनी नौकरी पर लौटने की अनुमति दी गई थी।
अदालत (Court) ने कहा कि समान तथ्य स्थितियों से संबंधित आदेशों के मद्देनजर सभी लंबित आवेदनों सहित वर्तमान याचिका का निस्तारण इस निर्देश के साथ किया जाता है कि उपरोक्त पारित विभिन्न आदेशों के अनुसार नियोक्ता द्वारा COVID-19 टीकाकरण पर जोर नहीं दिया जा सकता है।
शिक्षक के वकील ने प्रस्तुत किया कि सेवा लाभ के संबंध में प्रतिनिधित्व 14 जून 2022 को किया गया था। जवाब में अदालत ने निर्देश दिया कि एक सप्ताह के भीतर अधिकारियों को एक नए कवरिंग लेटर (New Covering Letter) के साथ उसी की कॉपी फॉरवर्ड की जाए।